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हरियाणा: महामारी भी नहीं रोक पाई Cycle Baba की रफ्तार, विश्व भर में ऐसे जगा रहे पर्यावरण को बचाने की अलख

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आज की आधुनिक दुनिया में जिस तरह जंगलों की कटाई करके इंडस्ट्रीज लगाई जा रही है। ऐसे में पर्यावरण संरक्षण की बहुत ही जरूरत है। पर्यावरण संरक्षण के लिए बहुत से लोग मुहिम चला रहे हैं। कुछ ने तो अपना पूरा जीवन पर्यावरण के नाम ही कर दिया है। ऐसे ही एक शख्स हैं जो साइकिल (Cycle Baba) पर घूम-घूमकर पूरी दुनिया को बिगड़ते पर्यावरण को संरक्षित करने के तरीके बता रहे हैं। पेशे से वह एक डॉक्टर हैं। इसी कारण हरियाणा के रहने वाले डॉ. राज पंड्यन (Dr. Raj Phanden) का साइकिल बाबा पड़ गया है।

पर्यावरण का यह प्रहरी अपनी साइकिल से सरोकारों का सारथी बन चुका है। एक लाख, 10 हजार पौधे लगाकर वैश्विक स्तर पर समाज को यह संदेश दे चुके हैं कि अपने भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए खुद ही पहल करनी होगी।  

उनका यह साइकिल का सफर वर्ष 2017 में शुरू हुआ था और अब तक वह 70 देशों में पर्यावरण बचाने की अलख जगा चुके हैं। खास बात यह है कि डॉक्टर साहब की साइकिल के पहियों को महामारी का संक्रमण भी नहीं रोक पाया।

महामारी के दौरान भी वह लगातार साइकिल चलाकर दुनियाभर में लोगों पर्यावरण के प्रति जागरूक और पौधे लगाने (Plantation) के लिए प्रेरित करते रहे। डॉ. राज ने बताया कि 2020 में जब महामारी ने पूरी दुनिया को घरों में कैद होने को मजबूर कर दिया था तब वह यूनाइटेड किंगडम से नीदरलैंड पहुंचे थे।

लॉकडाउन से थमी साइकिल की रफ्तार

लेकिन लॉकडाउन के कारण वह कहीं भी आ-जा नहीं सकते थे। भारतीय दूतावास के सहयोग से वह एक महीने तक होटल में ही रहे। वंदे भारत के सहारे वह भारत वापिस आए। फरवरी, 2021 में जब महामारी नियंत्रण में आई तो साइकिल बाबा ने एक बार फिर से अपनी धन्नो उठाई और चल पड़े देश-दुनिया में अलख जगाने।

महामारी ने जकड़ा

इस बार वह अपनी साइकिल से मिस्र (Egypt) पहुंचे। लेकिन महामारी ने डॉ. राज को जकड़ लिया। संक्रमित होने के कारण उन्हें 21 दिन के लिए एक होटल में क्वारंटाइन रहना पड़ा। इस दौरान शाकाहारी डॉ. राज को 21 दिन तक सिर्फ राजमा और ब्रेड खाने को मिला। अभी वह अफ्रीकी देशों की यात्रा पर बोत्सवाना में हैं। यहां से वह दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केपटाउन (Capetown) जाएंगे।

शुरू किया व्हील फोर ग्रीन मिशन

बता दें कि कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से डॉ. राज ने बीएमएस किया है। बचपन से ही उन्हें पर्यावरण और पेड़-पौधों से काफी लगाव था। उनका प्रकृति से इस कदर लगाव का श्रेय वह अपने पिता को देते हैं। बचपन में अपने पिता को पेड़-पौधों की देखभाल करते और खेतों की देखरेख करते देख उनके मन में पर्यावरण के प्रति लगाव पैदा हुआ।

2017 में पर्यावरण के प्रति इस लगाव को उन्होंने अपना जुनून और मिशन बनाने की ठानी। उन्होंने अपनी साइकिल को धन्नो और अपने मिशन को व्हील फोर ग्रीन (Wheel For Green Mission) नाम दिया है। उनका लक्ष्य है कि 2030 तक 200 देशों में साइकिल चलाकर पहुंचने और पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करना है।

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