हरियाणा के अंबाला कैंट में 22 एकड़ भूमि पर लगभग 300 करोड़ रुपये की लागत से बनने जा रहे आजादी की पहली लड़ाई के भव्य शहीदी स्मारक का संचालन जल्द ही शुरू होगा। इस भव्य स्मारक का उद्घाटन दिसंबर माह के दूसरे या तीसरे सप्ताह में किया जाएगा। स्मारक में प्रदर्शित किए जाने वाले एतिहासिक तथ्यों के सत्यापन व पुष्टि के लिए विशेष तौर पर इतिहासकारों की समिति गठित की गई है ताकि लोग उस समय की पल-पल की सही जानकारी से अवगत हो सकें। आज की बैठक में स्मारक में 1857 के इतिहास को किस प्रकार प्रदर्शित किया जाएगा, उसके संबंध में विस्तार से विचार-मंथन किया गया।
आजादी की पहली लड़ाई के शहीदी स्मारक के अंदर दर्शकों के आवागमन की योजना को अंतिम रूप दिया गया। 22 एकड़ में बन रहे इस स्मारक को 4 हिस्सों में बांटा गया है, जिसमें पहला प्रशासनिक भवन, दूसरा हिस्सा संग्रहालय भवन, तीसरा लाइब्रेरी व फूड कोर्ट तथा चौथा हिस्सा ओपन एयर थियेटर होगा।

संग्रहालय में मिलेगी इतिहास की संपूर्ण जानकारी
- संग्रहालय भवन के पहले कक्ष में दर्शकों को 1857 की आजादी की पहली लड़ाई के शुरू होने के कारणों की जानकारी मिलेगी।
- दूसरे कक्ष में 10 मई, 1857 को मेरठ से 9 घंटे पहले हरियाणा के अंबाला में किस प्रकार आजादी की पहली लड़ाई की शुरुआत होती है, यह कहानी देखने को मिलेगी।
- तीसरे कक्ष में अंबाला के बाद पूरे हरियाणा में इस लड़ाई की चिंगारी कैसे फैली तथा चौथे कक्ष में पूरे भारत में इस लड़ाई ने कैसे इतना बड़ा रूप हासिल किया, उन सब कथाओं से दर्शक रूबरू होंगे।
लोग अनोखे तरीके से दे सकेंगे शहीदों को श्रद्धांजलि

इसके अलावा स्मारक में एक श्रद्धांजलि कक्ष भी बनाया गया है, जहां प्रदेश व देश से आने वाले लोग एक अनोखे तरीके से यानी डिजिटल तरीके से शहीदों को श्रद्धांजलि दे सकेंगे और रात के समय लोगों द्वारा दी गई श्रद्धांजलि की बदौलत एक रोशनी आसमान में निकलेगी, जिसको पूरे अंबाला और आस-पास के जिलावासी देख सकेंगे।
अम्बाला से शुरू हुई थी आजादी के पहले स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी

पहले यह माना जाता था कि 1857 की क्रांति मेरठ से शुरू हुई थी लेकिन तथ्यों और इतिहासकारों के द्वारा यह बताया गया कि मेरठ से 9 घंटे पहले स्वतंत्रता संग्राम की पहली चिंगारी अम्बाला छावनी में उठी थी जोकि धीरे-धीरे हरियाणा के विभिन्न क्षेत्रों तथा देश के विभिन्न हिस्सों तक फैल गई।
आजादी की पहली लड़ाई के लिए लोगों तक संदेश पहुंचाने के लिए उस समय गुप्त कोड जैसे कमल का फूल, रोटी और पेड़ों की छाल का उपयोग किया जाता था। उसी समय को लोगों के दिलों में जगाने के लिए इस स्मारक के प्रांगण में कमल के फूल के रूप में 65 मीटर ऊंचा मेमोरियल टॉवर भी बनाया गया है। इस टॉवर में आने के तीन रास्ते होंगे, जिनमें एक सीढ़ी, लिफ्ट और एक रैंप होगा। रैंप के चारों तरफ 1857 की पहली लड़ाई के इतिहास को उकेरा जाएगा।

यह स्मारक विशेष तौर पर 1857 की क्रांति और शहीदों की याद में बनाया जा रहा है, जिससे आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा मिलेगी और उन्हें अपने क्रांतिकारी वीर शहीदों के जीवन के बारे में जानकारी मिल पायेगी।