करना चाहे तो इंसान क्या नहीं कर सकता इस दुनिया में। सब कुछ इसी दुनिया में संभव है। हार और जीत के किस्से तो जिंदगी का हिस्से हैं। हरियाणा के रोहतक में जन्में अरविंद कभी 50-50 रुपये में दिहाड़ी करते थे। आज उनका बिजनेस है, वो भी करोड़ों का। 16 वर्ष की उम्र से नौकरी कर रहे हैं। अरविंद बताते हैं कि उनके पिता ठेकेदारी करते थे। इसी से परिवार का खर्च चलता था। सबकुछ ठीक-ठाक था। फिर उनके पिता को काम में बड़ा नुकसान हुआ। नुकसान के कारण ही उन्हें अपना घर, जमीन सब कुछ बेचना पड़ा। फिर धीरे-धीरे अरविंद काम करने लगे। उन्होंने 50-50 रुपये दिहाड़ी पर काम किया। उस टाइम वो महज 16 बरस के थे।
परिवार की स्थिति सुधर नहीं पा रही थी। उन्होंने कुछ और करने का प्लान किया। कई छोटी-मोटी नौकरियां भी की, पर लंबे समय तक उन्हें जारी नहीं रख सके। फिर वो अपने इलाके के कुछ म्यूजिक आर्टिस्टों के संपर्क में आए। दोस्ती हुई, तो काम के बाद उनके साथ उठना-बैठना शुरू हो गया।
उनके कुछ दोस्त डीजे पार्टियों की मदद से अच्छी कमाई कर रहे हैं। फिर अरविंद ने भी डीजे का काम सीख लिया। धीरे-धीरे वो अपने इलाके में मशहूर हो गए।
फिर एक समय ऐसा भी आया, जब इलाके के लोग हर डीजे पार्टी के लिए सिर्फ उनसे ही संपर्क करते। इस पेशे में आने के बाद उनके पैर आर्थिक रूप से मजबूत हुए। फिर 2013 तक आते-आते उनका ध्यान एल्यूमीनियम ट्रस के कारोबार में गया। इसकी डिमांड डीजे पार्टी में काफी होती है।
धीरे-धीरे एल्यूमीनियम ट्रस के कारोबार को समझना शुरू किया। कई व्यापारियों से मिले। 10 लाख रुपए की लागत के साथ बिजनेस शुरू कर दिया। उनकी इवेंट मैनेजमेंट इंडस्ट्री के लोगों से अच्छी पहचान थी, जिसका उनके बिजनेस को बहुत फायदा मिला।
अरविंद की कंपनी का नाम डेविल है। ये अपने सेक्टर की एक जानी-मानी कंपनी है। यहां तक कि सालाना वो करीब 15 करोड़ रुपए का व्यापार करते हैं। बता दें, साल 2019 में, डेविल्स ट्रस को भारत में सर्वश्रेष्ठ ट्रसिंग कंपनी का पुरस्कार मिला था।
महामारी का असर उनके व्यापार पर भी पड़ा। अरविंद कहते हैं, ‘यह हमारे लिए कठिन समय है। लेकिन हमें विश्वास है कि हम जल्द वापसी करेंगे। हम सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान हमने अपने किसी भी साथी को नौकरी से नहीं निकाला है।
निकट भविष्य में हम साइकिलिंग की दुनिया में कदम रखने जा रहे हैं। जल्द ही हमारी साइकल्स देश के बाजारों में होगी।’ अरविंद की सच्ची कहानी ये बताती है कि हिम्मत मत हारो। बस लगे रहो। रास्ते खुल जाएंगे।