फरीदाबाद में बहुत सारी औद्योगिक इकाइयां हैं जिनमे कुछ तो पंजीकृत हैं और आधे से ज़्यादा पंजीकृत नहीं है। इन औद्योगिक इकाइयों में से निकलने वाला गन्दा पानी ना केवल जल प्रदूषित कर रहा है बल्कि यहाँ के पादपों को भी नष्ट करते जा रहा है। इसके लिए प्रशासन ने कई बड़े कदम उठाये हैं लेकिन उसका कोई लाभ देखने को नहीं मिला।
लेकिन अब इन्हीं गन्दे पानी को शोधित करने के लिए तीन सीईटीपी (कॉमन इंफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट) बनाने की तैयारी है। इसके लिए नगर निगम ने विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करवा ली है। डीपीआर पर आईआईटी रुड़की से भी सुझाव लिया जाएगा।

जानकारी के लिए बता दें कि जिले में करीब 28 हजार छोटी-बड़ी औद्योगिक इकाइयां है। इसके अलावा काफी बगैर पंजीकृत इकाइयां भी हैं।
औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले गंदे पानी को साफ करने के लिए घरेलू सीवर शोधन संयंत्र का प्रयोग किया जाता है लेकिन यह पूरी तरह से कारगर नहीं हैं।
इसके अलावा फरीदाबाद में डाई यूनिटें, केमिकल फैक्ट्रियां व एल्युमीनियम की कंपनियां भी हैं। एक सर्वे के अनुसार, फरीदाबाद की कंपनियों से -करीब 66 एमएलडी गंदा पानी रोजाना निकलता है।

इस पानी को साफ़ करने के लिए समुचित इंतजाम नहीं है। कई बार उद्योगों का गंदा पानी भी सीवर लाइनों के जरिए एसटीपी में पहुंच रहा है। इसे देखते हुए गंदे पानी को साफ करने के लिए अलग से सीईटीपी की जरूरत है। उद्योगों के पानी में केमिकल भी होता है। ऐसे में अलग संयंत्र की जरूरत है।
इसके लिए नगर निगम ने तीन संयंत्र लगवाने की योजना तैयार की है। निगम की योजना है कि डीपीआर पर आईआईटी रुड़की के विशेषज्ञों से राय ले ली जाए ताकि आधुनिक संयंत्र लगे और भविष्य की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हो।
बादशाहपुर में 15 एमएलडी, मिर्जापुर में 25 और प्रतापगढ़ गांव 50 एमएलडी का संयंत्र बनाए जाने हैं। इस पर करीब तीन से चार सौ करोड़ का खर्च आने का अनुमान है।

एक अनुमान के मुताबिक, शहर में जनसंख्या करीब 26 लाख है। शहर को करीब 352 एमएलडी पानी की जरूरत है। हालांकि 324 एमएलडी पानी की सप्लाई करने का दावा संबंधित विभागों का है। इससे घरेलू सीवर करीब 259 एमएलडी पैदा होता है।
इसके लिए बादशाहपुर में 45 एमएलडी, प्रतापगढ़ में 50 और मिर्जापुर गांव में 45 एमएलडी का एसटीपी है। इससे अभी करीब 157 एमएलडी पानी शोधित हो रहा है 102 एमएलडी सीवर के पानी को शोधित करने की जरूरत है।
दूषित हो रहा यमुना का पानी एनजीटी और प्रदूषण बोर्ड का सख्त निर्देश है कि यमुना नदी में शोधित पानी को ही डाला जाए, लेकिन जिले में पर्याप्त सीवर शोधन संयंत्र नहीं होने से हजारों लीटर पानी नालों के जरिए यमुना में गिर रहा है।

दूसरी ओर उद्योगों का भी गंदा पानी चोरी छिपे नालों में डाल दिया जाता है। यमुना एक्शन प्लान के तहत यमुना नदी के पानी को दूषित होने से बचाने के लिए विस्तृत कार्य योजना तैयार है। इसके तहत घरेलू और औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले गंदे पानी को 100 फीसदी शोधित करने की योजना है।