हरियाणा में बहुत से ऐसे ऐतिहासिक जगह है जिनके बारे में बहुत कम लोगों को पता है। मानचित्र पर बेचिराग गांव के रूप में पहचान रखने वाले कलायत के गांव खडालवा की धरती पर वर्ष 1954 में शिक्षा की अलख जगाने के लिए ग्रामीणों को बड़ी मुश्किलों की डगर तय करनी पड़ी थी।
प्राथमिक पाठशाला से राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल सफर के साक्षी 81 वर्षीय बुजुर्ग टेक राम मौण उम्रदराज होने के बाद भी इस अध्याय के एक-एक अक्षर को जहन में याद रखे हैं।
उस जमाने के दसवीं कक्षा तक पढ़े बुजुर्ग हैं। वे बताते हैं कि निरक्षरता की समस्या को देखते हुए मटौर गांव के लोगों ने बढ़सीकरी गांव स्थित सिंचाई विभाग की आजादी से पहले निर्मित लाल कोठी पर तत्कालीन राजस्व मंत्री इंद्र सिंह के समक्ष पाठशाला खुलवाने की मांग रखी थी।
उस दौरान टेक राम मौण तीसरी कक्षा के विद्यार्थी थे। मंत्री ने शिष्टमंडल को प्राथमिक पाठशाला के लिए 60 विद्यार्थियों की हाजिरी सुनिश्चित करने का तर्क दिया था।
हैरानी का विषय है कि उस समय पढ़ाई के लिए इतने विद्यार्थी इच्छुक नहीं थे। दो-चार युवा ही आस-पड़ोस और दूरदराज स्थित स्कूलों में पढ़ाई कर रहे थे।
इसलिए ग्रामीणों ने विशेष जागृति अभियान चलाकर हाली-पालियों को भी स्कूल में प्रवेश करने के लिए राजी किया। आखिरकार आंकड़ा पूरा हो गया और मंत्री ने वादे अनुसार स्कूल खुलवाने का निर्णय लिया।
अब समस्या पाठशाला के लिए संसाधन जुटाने की थी। इसके लिए मटौर के ग्रामीणों ने शिमला गांव से सांझा स्कूल स्थापित करने का सहयोग मांगा। इस गांव में पहले ही स्कूल संचालित था। इसलिए बात सिरे नहीं चढ़ पाई।
फलस्वरूप पड़ोसी गांव बढ़सीकरी के लोगों से इस विषय को लेकर जब चर्चा की गई तो बात बन गई और खडालवा प्राचीन शिव मंदिर के पास पाठशाला शुरू हो गई।
खडालवा में शुरू हुई सरकारी पाठशाला के प्रथम सत्र में 14 विद्यार्थियों ने पांचवीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। इसके बाद भी पढ़ाई-लिखाई एक अभियान ही बन गया।
वर्तमान में बढ़सीकरी, मटौर व आसपास के गांव के विद्यार्थी उच्च तालीम हासिल कर विभिन्न क्षेत्रों में नित कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। इस तरह समय रहते ग्रामीणों द्वारा संयुक्त रूप से उठाए गए कदमों के अभूतपूर्व परिणाम सबके सामने आ रहे हैं।