ड्राइवरी एक ऐसा पेशा है, जिसे समाज पुरुषों से ही जोड़कर देखता है. लेकिन चरखी दादरी जिले के गांव अखत्यारपुरा निवासी शर्मिला ने हैवी ड्राइवर बनकर समाज के सामने नई मिसाल पेश की है. शर्मिला को कभी ट्रैक्टर ड्राइवरी सीखते समय ताने सुने थे बावजूद इसके शर्मिला का संघर्ष रंग लाया और अब उनकी जॉइनिंग डीटीसी में बतौर चालक हुई है. अब वह राजधानी की सडक़ों पर डीटीसी बस दौड़ा रहीं हैं.

हैवी ड्राइवर बनीं
महेंद्रगढ़ निवासी शर्मिला की आठवीं पास करते ही चरखी दादरी के गांव अखत्यापुरा में शादी हो गई थी. शादी के बाद दो बच्चे हुए और पति की मजदूरी से काम नहीं चला तो शर्मिला ने सरकारी स्कूल में कुक का काम किया. साथ ही सास के साथ मिलकर भैंस पालकर परिवार का पालन-पोषण किया. शर्मिला ने 2019 के बैच में अपना प्रशिक्षण पूरा किया. परिवार की आर्थिक मदद के लिए उन्होंने ड्राइवरी सीखने का फैसला लिया था.

शर्मिला ने बताया कि बेटे ने उसको साइकिल चलानी सिखाई थी. एक बार बेटा बीमार हो गया और उसके पति को बाइक चलानी नहीं आती थी. बेटे को लगातार अस्पताल ले जाना था और एक-दो दिन साथ जाने के बाद परिचितों ने भी मना कर दिया. इसके बाद उसने बाइक सीखी और बाद में हैवी लाइसेंस का प्रशिक्षण लिया. शुरुआत में जब उन्होंने बाइक या ट्रैक्टर चलाना सीखा तो लोगों के ताने सुनने को मिले. लोगों ने उनके मुंह पर बोला कि यह काम पुरुषों का है, न कि महिलाओं का.
इन तानों को अनसुना कर उन्होंने अपना प्रशिक्षण जारी रखा और उनका संघर्ष रंग लाया है. शर्मिला का कहना है कि उन्हें ताने देने वाले ही जब ड्राइवरी की तारीफ करते हैं तो उन्हें खुशी होती है. वहीं उनकी चाची सास कमला देवी ने बताया कि शर्मिला ने संघर्ष कर ड्राइवरी सीखी है. उनकी बहु दिल्ली में डीटीसी की बसें चलाती है, ऐसे में उनको शर्मिला पर गर्व है. घर के कार्य तो सास व पति करते हैं, समय मिलने पर शर्मिला भी घर का कार्य करती है. वहीं ग्रामीण पवन कुमार ने कहा कि शर्मिला ने संघर्ष करते हुए डीटीसी में नौकरी पाई है. पहले लोग ताने मारते थे, अब गांव की बहु पर उन्हें नाज है कि वह दिल्ली में डीटीसी बस चला रही हैं.