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इस भैस को पालने से आपके घर में बहेंगी दूध की नदियां, जाने इसकी खासियत

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हरियाणा में पशुपालन की प्रथा काफी समय से चलती आ रही है। वैसे तो पूरे देश में ही लोग पशुपालन करते हैं, लेकिन हरियाणा में खासतौर पर सभी का व्यवसाय पशुपालन ही बन चुका है। जिसमें डेयरी व्यवसाय सबसे लोकप्रिय है।

डेरी में गाय और भैंस पालन करना पहला विकल्प माना जाता है। आजकल लोग डेरी से जुड़े काम करके लाखों रुपए कमा रहे हैं। चाहे लोग गांव में रह रहे है,  चाहे शहर में लेकिन भैंस पालन करके वह बहुत अच्छा कमा रहे हैं।इसके लिए अच्छी नस्ल की भैंस का चयन करना बहुत जरूरी है।

आज हम आपको एक ऐसी नस्ल की भैंस के बारे में बताने वाले हैं जिसको अपने खूटे पर बनते ही आपके यहां दूध की नदियां बहने लगेंगी। हम बात कर रहे हैं मेहसाणा नस्ल की भैंस की।

मेहसाणा नस्ल की भैंस देखने में बिल्कुल मुर्रा भैंसों की तरह ही होती है। उनका शरीर भारी भरकम होता है। यह काले और भूरे दोनों रंगों में पाई जाती है।

इनकी सींगे भी घूमी हुई होती हैं , लेकिन मुर्रा भैंसों से इनकी सिंग से थोड़ी कम घूमी हुई होती है। यह वजन में मुर्रा भैंसों से हल्की होती है लेकिन दिखने में धाकड़ होती हैं।

वैसे तो यह भैंस पूरे भारत में पाली जाती है, लेकिन खासतौर पर इसकी उत्पत्ति गुजरात के मेहसाणा जिले से मानी जाती है। इसलिए इसका इस नस्ल का नाम मेहसाणा पड़ा है।

इसके अलावा यह भैस गुजरात के साबरकांठा, बनासकांठा, अहमदाबाद और गांधीनगर और महाराष्ट्र में भी पाई जाती है। अब यह नस्ल उत्तर प्रदेश बिहार व अन्य राज्यों में भी पाली जाती है।

इस नस्ल की खास बात यह है कि इस को पालने में कोई झंझट नहीं है। अगर किसान चाहे तो अपने खेत से निकलने वाला भूसा चारा और घास को खिलाकर भी आसानी से इस भैंस को पाल सकता है।इसमें किसी तरह की मशक्कत करने की जरूरत नहीं है।

अगर बात करें, इसके दूध की तो यह प्रतिदिन 12 से 15 लीटर दूध देती है। यह भैंस 3 से 4 साल में अपनी पहली ब्यात के लिए तैयार हो जाती है। इसे आसानी से पाला जा सकता है। इसके लिए कोई ज्यादा झंझट या मशक्कत करने की जरूरत नहीं है।

इस भैस को पालने से आपको कम खर्चे में अधिक मुनाफा देखने को मिलेगा। अधिक दूध देने के कारण इस भैंस की डिमांड बहुत ज्यादा है  अगर बात करें इसकी कीमत की तो लगभग 50,000 से ₹1,50,000 तक यह भैंस मिलती है।

आपको बता दे,  इसकी कीमत भैंस की आयु और दूध पर निर्भर करती है। पशुपालकों को यह अच्छी कमाई करा सकती है और यह उनके बजट में भी आ सकती है।

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