हरियाणा के चरखी दादरी में रहने वाली 105 साल की रामबाई को उड़नपरी दादी कहा जाता है। 100 मीटर दौड़ में वर्ल्ड रिकार्ड बना चुकी रामबाई मेडलों का शतक लगा चुकी है। वो पिछले चार साल में नेशनल स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी है।
हालांकि रामबाई को इस बात का अफसोस भी है कि सरकार ने उनकी मदद नहीं की। उनका कहना है कि अगर सरकार से उनको मदद मिलती तो तो वह जीवन के अंतिम पड़ाव में विदेशी धरती पर गोल्ड लाने का मन में सपना संजोये है। विदेश में खेलने की मन में तमन्ना लिए रामबाई ने पासपोर्ट भी बनवाया लिया है।
गांव कादमा निवासी 105 वर्षीय रामबाई ने करीब चार वर्ष पहले बुजुर्गों को दौड़ते देखा तो खेतों के कच्चे रास्तों पर दौड़ लगानी शुरू कर दी। नानी को खेतों में दौड़ते नातिन शर्मिला ने दादी की प्रतिभा को पहचाना। उन्होंने दादी की अच्छी तैयारी करवाते हुए खेल के मैदान में उतारा। रामबाई की मेहनत रंग लाई और पहले ही प्रयास ने स्टेट लेवर पर मेडल जीत लिया। इसके बाद से रामबाई ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और देखते ही देखते मेडलों का शतक बना दिया।
रामबाई ने पिछले वर्ष वर्ष वडोदरा में आयोजित राष्ट्रीय स्तर की एथलेटिक्स चैंम्पियनशिप में 100 मीटर दौड़ नया वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था। जिसके बाद से रामबाई उड़नपरी दादी के नाम से मशहुर हो गई।
रामबाई ने पिछले दिनों अपनी तीन पीढ़ियों के साथ हरिद्वार व देहरादून में नेशनल स्तर पर प्रतियोगिता की 100 व 200 मीटर की दौड़ में दो गोल्ड जीते हैं। वहीं उसकी बेटी, पुत्रवधु और नातिन ने भी तीन मेडलों पर कब्जा किया। अब रामबाई विदेशी धरती पर देश के लिए मेडल लाना चाहती है।
रामबाई का कहना है कि वह आज भी स्वस्थ्य है। वो अपना सारा कार्य स्वयं करती हैं। रामबाई ने बताया कि वह खेतों के कच्चे रास्तों पर प्रेक्टिस भी करती हैं। उसकी नातिन ने उनका पासपोर्ट भी बनवा दिया है। सरकार अगर मदद करें तो वह विदेश में खेलकर देश को गोल्ड मेडल जीतकर ला सकती हैं।