वैसे तो हरियाणा प्रदेश में सावन के महीने में हर जगह घेवर बनाने का चलन है लेकिन दशकों से पानीपत जिले के समालखा के घेवर का कोई जवाब नहीं है। इस मिठाई को बनाने वाले दुकानदार व हलवाई कहते हैं कि यहां के पानी से इस मिठाई टेस्ट और जबरदस्त हो जाता है।
पानीपत के पानी की मिठास के कारण यह मिठाई जोरदार स्वाद देती है और मिठाई में इस पानी से नमी भी बनी रहती है। यहां घेवर खाने के लिए दूर- दूर से लोग आते हैं।
पानीपत का समालखा शहर कश्मीर से कन्याकुमारी तक जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग राष्ट्रीय राजमार्ग-44 पर स्थित है। हर समय व्यस्त रहने वाले इस हाईवे पर दूर- दूर से लोग आते हैं, जिनमें से कोई इस मिठाई यानी घेवर के बारे में जानता है वो इसे जरूर खाकर जाता है या अपने साथ ही ले जाता है।
इस घेवर में जबरदस्त स्वाद है इसलिए लोग इसका टेस्ट करते हैं। इतना ही नहीं, यहां से घेवर थोक भाव में भी हरियाणा के कई जिलों में भी सप्लाई किया जाता है। दुकानदार सचिन मित्तल का कहना है कि समालखा के दुकानदार मांग पूरी करने में सक्षम नहीं हैं।
इसलिए कई छोटे हलवाई भी रेहड़ी लगाकर घेवर का काम करते हैं लेकिन, यहां कई बार फिर भी मांग पूरी नहीं हो पाती है। उन्होंने बताया है कि पहले उनके दादा घेवर बनाकर समालखा बाजार में बेचते थे। उसके बाद, फिर उनके पिता ने भी यही काम शुरू किया और अब उनकी तीसरी पीढ़ी यहां घेवर बनाने का काम पुर जोर तरीके से कर रही है।
सचिन ने बताया है कि यह घेवर सिर्फ 60- 65 दिनों के सीजन में ही बनाई जाती है। सावन जब शुरू होते हैं तो समालखा की दुकानों में घेवर बनना शुरू हो जाता है और यह मिठाई जन्माष्टमी तक ही बनाई जाती है। यदि घेवर जन्माष्टमी के बाद अगर बनाया जाता है तो यह मिठाई ठीक से नहीं बन पाती है और इतना स्वाद भी नहीं मिलता।
दरअसल, सावन में आने वाले त्योहार तीज पर इस घेवर का बहुत और ज्यादा बढ़ जाता है। रिश्तेदारों के घर पहुंचने वाली मिठाइयों में घेवर की भूमिका अच्छी- खासी होती है। अगर रेट की बात करें तो यहां घेवर की कीमत लगभग 155 रुपये से लेकर 750 रुपये प्रति किलो तक आंकी जाती है।
हालांकि कोई दुकानदार सस्ता या महंगा भी दे देता है। यहां दूध से बना लाल घेवर और अधिक मात्रा में बिकता है।इसके अलावा, बाजार में सफेद घेवर, केसरिया घेवर के अलावा कई अन्य प्रकार के घेवर भी बिकते हैं।