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हरियाणा में ब्रिटिश कलेक्टर को क्रांतिकारियों ने दो बार किया था पराजित, खजाने पर किया था अपना हक

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स्वतंत्रता दिवस हमारे लिए कितना जरूरी होता है यह तो आप सभी को पता ही है। आज इस मौके पर हम आपको कुछ ऐसी चीजें बताना चाहते हैं जो कि आपके लिए बहुत जरूरी है। बता दे, बंगाल सिविल सर्विस के जॉन एडम लॉच एक 1857 में रोहतक के कलेक्टर थे।

अपने ही विद्रोही सैनिकों की बगावत की खबर मिलने के बाद उन्होंने पूरे जिले में अवकाश पर गए हुए सैनिकों को वापस आने के लिए कहा। उस समय सैनिक परंपराओं के लिए प्रसिद्ध रोहतक के जवान बड़ी संख्या में अंग्रेजी फौज में थे। यहां के रंगड़ और जाट समुदाय के लोग ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की रोजाना बतलियानो में भर्ती थे।

लेकिन वह अपने अंग्रेजी अफसरों से खुश नहीं थे। उन्होंने छुट्टी पर घर आकर गांव वालों के दिलों में आजादी की मशाल चलाई थी। विद्रोही सिपाहियों की एकता तोड़ने के लिए कलेक्टर ने  झज्जर नवाब को कुछ सेना रोहतक भेजने के लिए बोला,  लेकिन झज्जर नवाब ने इस चीज पर कोई ध्यान नहीं दिया।

दूसरी बार मांगने पर 18 मई 1857 को 2 तोपों और कुछ घुड़सवार ओं के साथ एक सेना भेज दी। वहां जाकर वह भी आजादी के मतवालों के साथ मिल गए। 23 मई 1857 को बादशाहा बहादुर शाह के दूत तफज्जुल हुसैन के साथ स्वतंत्रता सेनानियों ने रोहतक पर जोरदार हमला किया। कलेक्टर एडम लॉच हारने के बाद थानेदार भूरे खान और तहसीलदार बख्तावर सिंह के साथ गोहाना भाग गया।

विद्रोहियों ने फौज के कार्यालय, न्यायालय और ब्रिटिश अधिकारियों के बंगले जलाने और सब चीज खत्म कर दी। रोहतक कोष के कुछ हिस्सों को अपने कब्जे में लेकर दिल्ली लौटते समय तफज्जुल हुसैन ने अंग्रेजों के यहां रुकने का सोचा। वहां इमारतों को जला दिया।

विद्रोह में रंगड़, राजपूत, जाट, बुनकर शिल्पकार सभी आ गए थे। हरियाणा लाइट इन्फेंट्री और चौथा विशाला सैन्य टुकड़ियों में रोहतक के विद्रोह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 10 जून दोपहर को कलेक्टर लॉच जान बचाने के लिए पैदल ही सांपला की ओर भाग उठे। वहां से घोड़े से बहादुरगढ़ होते हुए दिल्ली भागा।  रोहतक में बागी ब्रिटिश  पर गोलियों से जोरदार हमला किया।

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