जैसा कि आपको पता है, हरियाणा में किसानों के लिए नई नई तकनीक आती रहती हैं। जिससे किसानों को काफी फायदा होता है। अभी एक और नई तकनीक आई है जिसके बारे में हम आपको बताने वाले हैं। इससे किसानों की पैदावार में 10 गुना ज्यादा फायदा होगा। यह परंपरागत खेती के बजाए ‘एरोपोनिक तकनीक’ से होगा और क्या होगा इस तकनीक में, जानने के के लिए खबर को अंत तक पढ़े।
आपको बता दें हरियाणा के करनाल में स्थित बागवानी विभाग के तहत आलू केंद्र उन्नत खेती करने में अहम योगदान दे रहा है। यह एक ऐसी तकनीक लेकर आया है, जिससे किसान बिना जमीन, बिना मिट्टी के हवा में आलू हुआ सकेंगे। जिसमें पैदावार 10 गुना ज्यादा होगी।

जैसे कि हमने आपको बताया ही था यह किसानों की परंपरागत खेती के बजाय एरोपोनिक तकनीक के प्रयोग से होगा । इस तकनीक से लागत कम लगेगी और मुनाफा बहुत ज्यादा होगा। यह किसानों के लिए बहुत फायदे की तकनीक है। इसमें किसानों को मेहनत भी कम लगेगी।

आपको बता दे, केंद्र द्वारा किसानों के लिए नई विधि निकाली गई है। जिसमें बिना जमीन बिना मिट्टी के हवा में ही आलू उगेंगे और पैदावार भी 10 गुना ज्यादा होगी। विशेषज्ञों ने बताया कि इस सेंटर का इंटरनेशनल पोटैटो सेंटर के साथ एक एमओयू हुआ है। इसके बाद भारत सरकार द्वारा एयरोपोनिक प्रोजेक्ट को अनुमति मिल गई है।

आपको बता दें आलू का बीज उत्पादन करने के लिए आमतौर पर ग्रीनहाउस तकनीक का प्रयोग किया जाता है। जिससे पैदावार काफी कम आती थी।इसमें एक पौधे से 5 होते आलू मिलते थे, जिन्हें किसान खेत में रोपित करता था। इसके बाद बिना मिट्टी के कॉकपिट आलू का बीज उत्पादन शुरू किया गया।इससे पैदावार करीब 2 गुना बढ़ गई।

जानकारी के अनुसार, इसके बाद अब एक कदम और आगे बढ़ाते हुए एयरोपोनिक तकनीक से आलू उत्पादन किया जा रहा है। जिसमें बिना मिट्टी बिना जमीन के आलू पैदा होने लगे हैं। इसमें एक पौधा 40 से 60 छोटे आलू तक दे रहा है, जिन्हें खेत में बीज के तौर पर उगाया जा रहा है। इस तकनीक से करीब 10 से 12 गुना पैदावार बढ़ जाएगी।

इस विषय में डॉ मुनीश सिंगल सीनियर कंसलनेन्ट ने बताया कि एयरोपोनिक एक महत्वपूर्ण तकनीक है । जिसके नाम से ही स्पष्ट होता है एयरोपोनिक्स यानी हवा में ही आलू को पैदा करना।

उन्होंने बताया कि इस तकनीक में जो भी जो भी न्यूट्रिएंट्स पौधों को दिए जाते हैं, वह मिट्टी के जरिए से नहीं बल्कि लटकती हुई जड़ों से दिए जाते हैं। इस तकनीक के जरिए से आलू के बीजों का बहुत ही अच्छा उत्पादन कर सकते हैं।

उन्होंने आगे बताया यह किसी भी मिट्टी जनित रोगों से रहित होंगे उन्होंने बताया कि परंपरागत खेती के मुकाबले में इस तकनीक के जरिए से ज्यादा संख्या में पैदावार मिलती है।

उन्होंने बताया कि आने वाले समय में यह तकनीक के जरिए से अच्छी गुणवत्ता वाले बीज की कमी पूरी की जा सकेगी। केंद्र में 1 यूनिट में इस तकनीक से 20 हजार पौधे लगाने की क्षमता है, जिससे आगे फिर करीब 8 से 10 लाख मिनी ट्यूबर्स या बीज तैयार किये जा सकते है।