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हरियाणा के इस व्यक्ति ने अपना सपना पूरा करने के लिए 70 की उम्र में दी 10वीं की परीक्षा

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सपना देखने की कोई उम्र नहीं होती। लेकिन हम उन सपनों की बात नहीं कर रहे हैं जिन्हे सोते समय देखते हैं। हम उन सपनों की बातकर रहे हैं जिन्हे हम खुली आंखों से देखते हैं और इसे पूरा करने लिए दिन रात एक कर देते हैं। कहते हैं उम्र सिर्फ एक नंबर है। अगर कुछ करने की चाह हो तो इसके लिए उम्र मायने नहीं रखती। हरियाणा के सोनीपत से एक ऐसा ही मामला सामने आया है जहां एक 70 वर्षीय बुजुर्ग अपना सपना पूरा करने के लिए उम्र को किनारे कर दिया। हम बात कर रहे हैं सोनीपत के गोहाना में रहने वाले आजाद सिंह मोर की। जिन्होंने सरपंच बनने का सपना देखा था लेकिन इसमें एक रुकावट आ रही थी वो थी दसवीं बोर्ड की परीक्षा। अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने इस उम्र में दसवीं की परीक्षा दी। लेकिन क्या वो इस परीक्षा में उत्तीर्ण हो पाए? यह जानने के लिए आगे पढ़ें।

बता दें कि 7 साल पहले व्यवस्था में सुधार की दिशा को लेते हुए हरियाणा सरकार की तरफ से पंचायती चुनाव में उम्मीदवारों के लिए शैक्षणिक योग्यता को निर्धारित कर दिया गया है। जिसके तहत सामान्य वर्ग के सरपंच उम्मीदवारों के लिए दसवीं पास की योग्यता अनिवार्य हो गई है।

हरियाणा सरकार के इस फैसले से कई लोगों के सपनों पर पानी फिर गया था आजाद सिंह मोर भी इन्हीं में से एक थे। लेकिन कुछ लोगों ने इसका विकल्प चुनते हुए अपने बेटे, पत्नी, बेटी, पुत्रवधू को पंचायती चुनावी मैदान में उतार दिया है। लेकिन बरोदा निवासी आजाद सिंह मोर ने खुद पंचायती चुनाव लड़ने का सपना देखा था।

70 की उम्र में किया दसवीं कक्षा के लिए आवेदन

1 जनवरी 1952 में जन्मे आजाद सिंह मोर ने पहले केवल कक्षा छठी तक पढ़ाई कर रखी थी। कम पढ़ाई की वजह से वह चुनाव लड़ने अपना चुनाव लड़ने का सपना पूरा नहीं कर पा रहे थे। इसके बाद अपने सपने को पूरा करने के लिए आजाद सिंह मोर ने 70 बरस की उम्र में आगे बढ़ने का फैसला किया। उन्होंने 2021 में संयुक्त मुक्त विद्यालय शिक्षा संस्थान से दसवीं कक्षा के लिए आवेदन किया।

कोरोना महामारी की वजह से परीक्षाएं नहीं हो पाई और बोर्ड ने इंटरनल असेसमेंट के आधार पर सभी विद्यार्थियों को पास कर दिया। जिसके बाद आजाद सिंह बोर्ड की मार्कशीट सामने आई। जिसमें आजाद सिंह मोर को 70 की उम्र में करीब 76% अंक प्राप्त हुए।

बचपन का था सपना

आजाद सिंह मोर ने बताया है कि सरपंच बनने की ख्वाहिश उनकी बचपन से ही थी। लेकिन कभी मौका ही नहीं मिला कि इस गांव (बरोदा) का विकास करके दिखाओ। उन्होंने कहा कि मेरी नीति क्षेत्र का विकास करने की है। ऐसी बात उनसे पूछा गया कि आपने दसवीं की परीक्षा दो पास कर ली है लेकिन पंचायत चुनाव लड़ना काफी खर्चीला है।

आप इसका मुकाबला कैसे करोगी उन्होंने कहा कि जितना खर्चा होगा करेंगी। और पैदल चलकर पूरे क्षेत्र में अपने लिए प्रचार करेंगे। इसके बाद उनसे पूछा गया कि सरपंच बहुत पैसा खाते हैं तो उन्होंने कहा कि इसी को तो रोकना है सरकार क्षेत्र के विकास के लिए बहुत पैसा देती है लेकिन यह सरपंच पर सारा पैसा अपनी जेब में डाल लेते हैं।

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