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हरियाणा की इस बच्ची को महामारी ने किया था मां से दूर, 3 साल बाद ऐसे पहुंची घर, परिवार में खुशी का माहौल

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महामारी ने न जाने कितनों का घर उजाड़ा, कितने परिवारों के सदस्यों की जान ली, उन्हें उनके परिवार से अलग कर दिया। महामारी ने सिर्फ लोगों की जान लेकर उन्हें उनके परिवार से अलग नहीं किया बल्कि इसके कारण कई छोटे बच्चे अपने परिवार से बिछड़ गए। ऐसी ही हरियाणा के यमुनानगर की रहने वाली एक बच्ची करीब तीन साल पहले अपने परिवार से बिछड़ गई थी। लेकिन आज करीब तीन साल बाद बच्ची सकुशल अपने परिवार के पास पहुंच गई। बच्ची के आने से परिवार में खुशियों का माहौल है। आस पास के लोग भी बच्ची के लौटने की खुशी में बधाईयां देने पहुंच रहे थे। पोती के सकुशल लौटने पर जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर बैठी दादी को मानो जीवनभर की तपस्या का फल मिल गया हो।

मां ने बेटी को जब गले लगाया मानों दोनों के बीते तीन सालों के जख्मों पर मरहम लग गया हो। पिता, ताया, चाचा हर किसी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था केक काटकर बेटी के नए जन्म को सेलिब्रेट किया गया। आस पड़ोस और रिश्तेदार भी खबर मिलते ही सोनिया (काल्पनिक नाम) को देखने आ रहें हैं।

मगर सोनिया (काल्पनिक नाम) के लिए तीन सालों का यह सफर इतना आसान नही था. भूख प्यास और वक्त के थपेड़ो से वह गुमसुम पड़ गई थी। किसी तरह अंबाला चिल्ड्रन शेल्टर होम पहुंच गई तो खाने पीने को मिलने लगा, लेकिन वह इस दौरान किसी से बात नही करती थी, और न ही अपने बारे में कुछ बता पाती। इसके बाद उसे करनाल और फिर कुरूक्षेत्र के बाद यमुनानगर के बाल कुंज शिफ्ट कर दिया गया।

महिला सुप्रीडेंट ने ढूंढ निकाला बच्ची के परिवार

यमुनानगर छछरौली बालकुंज में इस बच्ची को सुप्रीडेंट मोना चौहान मिली। बस यहीं से सोनिया की किस्मत ने उसका साथ देना शुरू कर दिया। मोना ने बच्ची के साथ भावनात्मक नजदीकियां बनाई और उसकी बड़ी बहन बनकर उसके दिल को टटोला। उसे परिवार की अहमियत के बारे में समझाया। जिसके बाद बच्ची ने अपनी चुप्पी तोड़ी। उसे अपने बारे में ज्यादा तो कुछ नहीं पता था। सिर्फ बाल्मिकी बस्ती का बार बार जिक्र कर रही थी। जिसके बाद मोना चौहान ने दिन-रात एक करके बच्ची का परिवार ढूंढ निकाला।

तीन साल से यमुनानगर पुलिस और पंचकुला क्राईम ब्रांच भी ढूंढ रही थी बच्ची को

बच्ची के परिवार ने तीन साल पहले पुलिस में एफआईआर भी दर्ज करवा रखी थी। पंचकुला क्राइम ब्रांच भी बच्ची की तलाश में प्रयास कर रही थी। लेकिन 3 सालों के लंबे इंतजार ने परिजनों की उम्मीद तोड़ दी थी। आस पड़ोस और रिश्तेदार के लोग भी समझने लग गए थे कि शायद अब बच्ची जिंदा नहीं रही होगी। ऐसे में अचानक अपनी बच्ची को सकुशल सामने देख परिवार इसे चमत्कार से कम नहीं मान रहा और परिजन मोना चौहान और यमुनानगर बाल कुंज टीम की तुलना भगवान से कर अपनी भावनाएं प्रकट कर रहें हैं।

दस सालों में करीब 700 बच्चों को पहुंचाया घर

बता दें कि मोना चौहान पिछले दस सालों में करीब 700 मिसिंग बच्चों को उनके परिवार से मिलावा चुकी है। यह बच्चे देश के अलग अलग राज्यों से थे। हर केस की एक अलग मार्मिक कहानी होती है जिसे जान मोना खुद को रोक नहीं पाती और गुमशुदा बच्चों के परिवार ढूंढने में जी जान लगा देती हैं। बाल कुंज के ऑफिसर इन चार्ज राजिंदर बहल ने भी मोना को बधाई देते हुए कहा कि उनकी कामना है की मोना चौहान इसी तरह संस्थान का नाम रोशन करती रहें।

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