Homeख़ासइन तरीकों से हरियाणा में बदल गई सरकारी स्कूलों की सूरत

इन तरीकों से हरियाणा में बदल गई सरकारी स्कूलों की सूरत

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हरियाणा के हिसार ब्लॉक के सरकारी हाई स्कूल के कक्षा पांचवी के छात्र बाकी सामान्य स्कूली बच्चों से काफी अलग हैं। जानना चाहते हैं क्यों? दरअसल वे रविवार को भी स्कूल जाते हैं! उनके भीतर सीखने और अच्छी तरह से समझने का एक जोश भी है। बच्चे तेजी से पहाड़े याद कर रहे हैं। स्कूल में पढ़ने वाली 12 साल की ज्योति कहती है, ‘पहले मुझे गणित में कुछ भी नहीं पता था। मुझे सातवीं कक्षा के बच्चों से भी कम गणित आती थी। पढ़ने में मन नहीं लगता था और कक्षाएं भी मजेदार नहीं होती थीं।’

अब इस स्कूल में चीजें थोड़ी अलग ढंग से की जाती हैं। अब अध्यापक यह सुनिश्चित करते हैं कि किसी भी बच्चे का हर कॉन्सेप्ट क्लियर होना चाहिए। शिक्षकों ने बीते पूरे एक साल बच्चों को मुश्किल में समझ आने वाले विषयों पर काम किया है। इसके अलावा पढ़ाई को दिलचस्प बनाने के लिए टैबलेट का उपयोग किया गया और डिजिटल माध्यमों पर भी जोर डाला गया। हरियाणा का बुरा रिकॉर्ड हरियाणा में पहले स्कूली शिक्षा की स्थिति ऐसी नहीं थी। इसलिए अब प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में व्यापक सुधार किए जा रहे हैं। राज्य सरकार द्वारा ‘सक्षम घोषणा’ प्रोग्राम संचालित किया जा रहा है ताकि 80 फीसदी ग्रेड लेवल क्षमता विकसितकी जा सके। इसे प्रदेश के सारे सरकारी स्कूलों में लागू किया जा रहा है। हरियाणा माध्यमिक शिक्षा के महानिदेशक राकेश गुप्ता बताते हैं कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की खराब स्थिति को सुधारने के लिए सरकार द्वारा इस पर ध्यान केंद्रित किया गया।

हरियाणा का बुरा रिकॉर्ड हरियाणा में पहले स्कूली शिक्षा की स्थिति ऐसी नहीं थी। इसलिए अब प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में व्यापक सुधार किए जा रहे हैं। राज्य सरकार द्वारा ‘सक्षम घोषणा’ प्रोग्राम संचालित किया जा रहा है ताकि 80 फीसदी ग्रेड लेवल क्षमता विकसितकी जा सके। इसे प्रदेश के सारे सरकारी स्कूलों में लागू किया जा रहा है। हरियाणा माध्यमिक शिक्षा के महानिदेशक राकेश गुप्ता बताते हैं कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की खराब स्थिति को सुधारने के लिए सरकार द्वारा इस पर ध्यान केंद्रित किया गया।

अगर हम NCERT के विभिन्न राष्ट्रीय सर्वेक्षणों और असर ASER की रिपोर्ट पर गौर करें तो हमें पता चलता है कि साल दर साल राज्यों की स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में कमी आ रही है। हरियाणा में सरकारी स्कूल के अध्यापक अच्छे और योग्य हैं, लेकिन कहीं कुछ कमी रह जा रही है। सरकारी स्कूलों की पढ़ाई सार्थक नहीं हो पा रही है। यहीं से हमने सोचना शुरू किया।’ 2014 में हरियाणा के सरकारी स्कूलों में प्राथमिक स्तर पर कुल छात्रों से केवल 40 प्रतिशत ही ग्रेड लेवल सक्षमता हासिल कर पाते थे। 2016 की असर रिपोर्ट में यह बात सामने आई कि हरियाणा में सीखने के परिणाम देश में वर्तमान में स्कूल में दाखिल कई बच्चों के ग्रेड लेवल से काफी नीचे हैं। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने राज्य शिक्षासुधार में सुधारात्मक कदम के रूप में कई सुधारों की शुरुआत की, जिनमें शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम, शिक्षकों की नियुक्तियां और डेटा सिस्टम विकसित करने जैसे सुधार शामिल थे।

इन सारी पहलों की बदौलत अब राज्य में 65 फीसदी से अधिक छात्र तीसरी, पांचवीं और आठवीं कक्षा में ग्रेड लेवल सक्षमता हासिल कर पा रहे हैं। वहीं 81 में से 26 ब्लॉक्स को सक्षम घोषित किया गया है। इन सभी स्कूलों को गैर सरकारी संगठनों द्वारा मूल्यांकित किया गया है। शिक्षकों पर एक अध्याय जहां एक ओर स्कूली शिक्षा का प्राथमिक उद्देश्य छात्रों के लिए बेहतर शिक्षण परिणाम सुनिश्चित करना है, वहीं दूसरी तरफ भारतीय शिक्षा प्रणाली में अधिकांश छात्र औसत स्तर से काफी नीचे रहते हैं। करनाल जिले के घरौंडा ब्लॉक में सरकारी स्कूल कुटेल के हेडमास्टर दीपक कुमार इसके लिए शिक्षकों को जिम्मेदार ठहराते हैं। वे कहते हैं, ‘पहले शिक्षक आलसी थे और उनके भीतर बच्चों को पढ़ाने की कोई प्रेरणा नहीं थीं। इस वजह से अधिकतर छात्र स्कूल में अनुपस्थित रहते थे। कई बार तो शिक्षकों को यह भी नहीं पता होता था कि कौन सा अध्याय पढ़ाना है।’

दरअसल शिक्षकों को अच्छे से पता होता है कि उन्हें बच्चों को कैसे पढ़ाना है। उन्हें साल में सिर्फ एक बार ट्रेनिंग दी जाती है इस वजह से उनके दायरे सीमित हो जाते हैं और वे पाठ्यक्रम पूरा नहीं कर पाते हैं। शिक्षक शिक्षण सामग्री जैसे- पाठ्यपुस्तकें, कार्यपुस्तिकाएँ, प्लानिंग डायरिंयां आमतौर पर शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत से पहले स्कूलों में नहीं पहुँचती हैं, जिससे शिक्षक की तैयारी के समय में दो से तीन महीने का नुकसान होता है। इसके अलावा शिक्षकों को प्रशासनिक और गैर-शैक्षणिक कार्यों में लगा दिया जााता है जिससे उन पर काफी बोझ आ जाता है। सितंबर 2018 में, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एजुकेशनल एंड एडमिनिस्ट्रेशन (एनयूईपीए) की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि शिक्षक के वार्षिक स्कूल के घंटे (19.1 प्रतिशत) का पांचवां हिस्सा शिक्षण गतिविधियों पर खर्च किया गया था। शिक्षक अपना शेष समय इस प्रकार बिताते हैं: गैर-शिक्षण मुख्य गतिविधियों में 42.6 प्रतिशत, गैर-शिक्षण स्कूल-संबंधित गतिविधियों में 31.8 प्रतिशत और अन्य विभाग की गतिविधियों पर 6.5 प्रतिशत। दीपक कहते हैं कि इस वजह से हरियाणा की स्कूली शिक्षण व्यवस्था में तत्काल की हस्तक्षेप की आवश्यकता थी।

वे कहते हैं, ‘सक्षम इसलिए भी जरूरी था ताकि हर अध्यापक को जागरूक और प्रशिक्षित बनाया जा सके। एक बार अध्यापक बच्चों में रुचि दिखाना शुरू कर दे तो बाकी बच्चे अपने आप पढ़ने में रुचि रखने लगते हैं और फिर उनके माता-पिता को भी इसमें शामिल होना पड़ता है।’ हरियाणा में 2014 में शिक्षा में प्रणालीगत सुधारों की शुरुआत की और इसे 2017 में सक्षम हरियाणा आंदोलन में समग्र के समर्थन से तब्दील कर दिया गया। 2014 से ही सरकारी स्कूलों को माइकल एंड सुजैन डेल फाउंडेशन द्वारा सहायता प्रदान की जा रही है। इस कार्यक्रम की बदौलत शिक्षा व्यवस्था में व्यापक सुधार हुआ है।

राकेश कहते हैं, ‘2017 तक हमें समझ में आ गया था कि स्कूली शिक्षा व्यवस्था में समस्या कहां है। हमें लगा कि हमारा ध्यान छात्रों पर अधिक होना चाहिए इसलिए हमने तय किया कि हम बच्चों को पढ़ाने के तरीके में बदलाव करेंगे। इसके लिए हमने अध्यापकों से सलाह मशविरा भी किया।’ इस कार्यक्रम को जमीनी स्तर पर गति देने के लिए युवा पेशेवरों को मुख्यमंत्री सुशासन असोसिएट्स प्रोग्राम के तहत काम पर रखा गया ताकि उनका सही इस्तेमाल किया जा सके। इसके बाद उन्हें हर जिले में शिक्षण व्यवस्था को सुधारने में लगाया गया।

सरकार ने शुरू में लर्निंग एनहांसमेंट प्रोग्राम (एलईपी) शुरू किया था, जिसमें शिक्षकों से कहा गया था कि वे हर दिन पहले घंटे का इस्तेमाल बच्चों को उन चीजों को सिखाने की कोशिश करें जो वे अब तक नहीं सीख पाए हैं। एलईपी मैन्युअल्स को हरियाणा के 119 ब्लॉक में पदस्थ 40,000 अध्यापकों में वितरित किया गया। वॉट्सऐप के जरिए ‘DigiLEP’ को तैयार किया गया ताकि शिक्षकों से सीधे संवाद स्थापित किया जा सके। इससे यह भी सुनिश्चित किया गया कि अध्यापक एलईपी को सही ढंग से लागू कर रहे हैं या नहीं। इसकी निगरानी सरकार द्वारा की जाती है। अब तक 77 फीसदी प्राथमिक स्कूलों में 30,000 घंटे का प्रशिक्षण आयोजित किया जा चुका है। इसके अलावा अध्यापकों के लिए ‘सक्षम अध्यापक नाम का एक डैशबोर्ड भी बनाया गया ताकि एक साल में छह बार छात्रों का मूल्यांकन किया जा सके। अब हर स्कूल में दो महीने में कम से कम एक बार निरीक्षण भी किया जाता है।’

उन्होंने कहा, ‘हमने सरकारी अधिकारियों को स्कूलों का औचक निरीक्षण करने के आदेश दिए हैं। इसके पहले केवल स्कूल में पैसे और बुनियादी ढांचे की निगरानी की जाती थी। हमने इसके लिए एक शैक्षणिक निगरानी फॉर्म बनाया है जिसमें कुछ सवालों के जवाब दर्ज करने होते हैं।’ जब जिले के सारे ब्लॉक सक्षम हो जाते हैं तो उस जिले को सक्षम घोषित कर दिया जाता है। इस अभियान के एक साल के भीतर ही 81 में से 26 ब्लॉक को सक्षम घोषित कर दिया गया है। वहीं 18 जिले सक्षम होने की प्रक्रिया में हैं। हरियाणा सरकार इन प्रयासों के माध्यम से सरकारी स्कूलों को प्राइवेट स्कूलों के बराबर लाना चाहती है।

Anila Bansal
Anila Bansal
I am the captain of this ship. From a serene sunset in Aravali to a loud noisy road in mega markets, I've seen it all. If someone asks me about Haryana I say "it's more than a city". I have a vision for my city "my Haryana" and I want people to cherish what Haryana got. From a sprouting talent to a voice unheard I believe in giving opportunities and that I believe makes a leader of par excellence.

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