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हरियाणा की बेटी ने दूसरी बार कुश्ती में गोल्ड जीतकर रचा इतिहास, कोच ना होने पर भी नहीं मानी थी हार

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हरियाणा के खिलाड़ी आज हर जगह अपना परचम लहरा रहे हैं। जिसमें की खास बेटियां बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही हैं। ऐसा माना जाता है कि सिर्फ कोच के मार्गदर्शन में ही प्रैक्टिस करके ही सबसे बेहतर प्रदर्शन किया जा सकता है। आज हम आपको एक ऐसी बेटी के बारे में बताने वाले हैं जिन्हें कोच नहीं मिला तो उनके पिता ने 5 साल पहले गांव छोड़कर हिसार में आकर बस गए।

हम बात कर रहे हैं बेटी अंतिम पंघाल की। कुश्ती में बेटी के सपने को पूरा करने के लिए उसके पिता 3 साल तक किराए के मकान में रहे और बेटी को प्रशिक्षण दिलाया। पिता ने डेढ़ एकड़ जमीन, गाड़ी, ट्रैक्टर से लेकर मशीन सब बेच दिया और मकान तैयार करवाया। यह कहानी मूल रूप से हरियाणा के हिसार के भागना की रहने वाली पहलवान अंतिम पंघाल के परिवार की है।

यह परिवार आर्थिक रूप से काफी कमजोर था। लेकिन इसके बावजूद भी अंतिम ने हिम्मत नहीं हारी। अंतिम ने जॉर्डन में अंडर 20 विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में यूक्रेन की खिलाड़ी मारिया को 4- 0 से हराकर स्वर्ण पदक को अपने नाम किया।  इसी के साथ वह लगातार दो विश्व किताब अपने नाम कर चुकी है और देश की पहली महिला पहलवान भी बनी है।

जब उन्होंने पदक जीता तो इस पर पूरे परिवार में काफी खुशी का माहौल दिखाई दिया। परिवार के सदस्यों ने अंतिम का मैच देखा। पिछले साल बुल्गारिया में हुई इसी चैंपियनशिप में अंतिम ने स्वर्ण पदक जीता था। पिता रामनिवास एक किसान है और  माता कृष्णा ग्रहणी है। चार बहनों में अंतिम सबसे छोटी बहन है और उनका एक भाई है।

पिता ने बताया कि बेटी का सपना था कि वह कुश्ती में नाम रोशन करें। लेकिन गांव में कोई भी कुश्ती की सुविधा नहीं थी। बेटी के सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने गांव छोड़ने का फैसला लिया। शुरुआत में बेटी अंतिम में महावीर स्टेडियम में 1 साल का अभ्यास किया, अब 4 साल से बाबा लाल दास अखाड़े में अभ्यास करती हैं।

वह हिसार के गंगवा में रहती हैं। फाइनल राउंड में अंतिम ने यूक्रेन की पहलवान को हराकर स्वर्ण पदक अपने नाम किया था। अंतिम की बड़ी बहन सरिता कबड्डी में नेशनल खिलाड़ी है। जब सरिता ने कबड्डी की शुरुआत की तो छोटी बहन का भी खेलने का मन हुआ।

मगर सरिता ने मना कर दिया। बोली की टीम गेम में भेदभाव होता है। इसलिए आप कबड्डी ना खेलकर कुश्ती करो। कुश्ती एकल गेम है। इस गेम में खुद की मेहनत ही रंग लाती है। इसके बाद अंतिम मैदान में उतर गई और दांवपेच सीखना शुरू किया  इसके बाद अंतिम ने काफी अच्छे अच्छे प्रदर्शन किए और काफी पदक अपने नाम किए। 

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