वर्ष 2022-23 का बजट अंत्योदय को समर्पित है ऐसा हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने विधानसभा में कहा। सरकार का ध्येय पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति का उत्थान करना है। जिसका हक होगा, उसे अवश्य मिलेगा। सरकारी योजनाओं का लाभ सबसे पहले गरीब व्यक्ति को देंगे। हमने हर जरूरतमंद व्यक्ति का उत्थान करने का बीड़ा उठाया है। प्रति व्यक्ति आय का अर्थ विपक्ष के साथी शब्दों के हिसाब से न निकालें। विगत दो सालों में महामारी के कारण विकास की रफ्तार धीमी हुई है लेकिन सरकार ने रफ्तार बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। प्रति व्यक्ति आय यह नहीं दर्शाती कि राज्य में एक आदमी की आय कितनी है। यह केवल एक लेखांकन शब्द है, जिससे एक राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का प्रति व्यक्ति आय के अनुपात में पता लगता है।
कर्ज को देखने का नजरिया सही होना चाहिए। समय के साथ कर्ज बढ़ता है लेकिन अर्थशास्त्री व नीति आयोग स्वस्थ आर्थिक स्थिति का आकलन डेबिट टू जीएसडीपी अनुपात से करते हैं। इसके अनुसार जीएसडीपी का 25 प्रतिशत से अधिक ऋण नहीं होना चाहिए। महामारी के बावजूद हमारा यह अनुपात 24.98 प्रतिशत है। पड़ोसी राज्य पंजाब में तो यह 48 प्रतिशत है। हमारा राजस्व घाटा भी 3 प्रतिशत से कम है।
साथ ही इस वर्ष 55 हजार करोड़ रुपये का कर्ज लेना है। इसमें 14 हजार 800 करोड रुपये किसानों की खरीद प्रक्रिया और भंडारण के लिए भी शामिल हैं। इस नाते से देखा जाए तो कर्ज राशि 40 हजार करोड़ रुपये के आसपास है, इसमें से लगभग 20 हजार करोड़ रुपये का पिछला भुगतान करना हैं।
उदय स्कीम के तहत बिजली कंपनियों के घाटे का 75 प्रतिशत सरकार ने अपने हिस्से में लिया और 25 प्रतिशत के लिए इक्विटी जारी की गई। उन्होंने कहा कि इक्विटी हमारा निवेश है, क्योंकि इससे पूंजीगत संपत्तियां ज्यादा होती हैं।
गाड़ी का इंजन तो खोल दिया लेकिन बांधना नहीं आया
नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि इस साल का बजट देखकर ऐसा लगता है कि किसी सीखदड़ मिस्त्री ने गाड़ी का इंजन तो खोल लिया लेकिन वापस बांधना नहीं आया। आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता तक की मांगों को अनसुना कर दिया गया। महंगाई के नाम पर जनता पर जो बोझ पड़ रहा है, उसे सरकार किस श्रेणी में रखेगी? महंगाई गैर-कानूनी टैक्स होता है।
सरकारी विभागों में खाली पड़े है एक लाख पद
सरकारी महकमों में करीब एक लाख पद खाली पड़े हैं। आज स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं, अस्पतालों में डॉक्टर नहीं हैं और सरकारी दफ्तरों में कर्मचारी नहीं है। कर्मचारियों की भर्तियां न कर सरकार ने खुद को मिनिमम करने का काम किया है।
मैक्सिमम गवर्नेंस के नारे को चरितार्थ करने के लिए सरकार ग्राम पंचायत के चुनाव नहीं करवा रही है। चुनावों को टालकर सुशासन सहयोगी जैसी गैर-जरूरी नियुक्तियां की जा रही हैं।