जीवन का सबसे बड़ा सच है मौत, जिसे कोई मिटा नहीं सकता। जो इस दुनिया में आया है उसे एक दिन अपना शरीर छोड़ना ही है ये एक कड़वा सच है जिसे हर किसी को मानना पड़ता है। मृत्यु के कुछ समय तक आत्मा को अजब-गजब अनुभव से गुजरना होता है जो आत्मा के भी दुखद और कष्टकारी होती है।आत्मा शरीर से निकलकर कुछ देर तक अचेत अवस्था में रहती है।

आत्मा को इस प्रकार का अनुभव होता है जैसे कठिन परिश्रम से थका हुआ मनुष्य गहरी निद्रा में होता है लेकिन कुछ पल में यह अचेत से सचेत हो जाती है और उठकर खड़ी हो जाती है।
मनुंष्य के मृत्यु के बाद भी उसकी आत्मा वैसे ही व्यवहार करती है जेसे एक जीवित इंसान के साथ व्यवहार करती है। जब भी शरीर से आत्मा निकल कर खड़ी होती है।
तो वह हमारी रिश्तेदारों को बुलाती है लेकिन उसकी आवाज कोई भी नहीं सुन पाता है इससे आत्मा को बेचैनी होनी शुरू हो जाती है और आत्मा परेशान होकर लोगों को परेशान करना चाहती है।

लेकिन ना तो उसको कोई देख पाता है और ना ही उसको कोई सुन पाता है। मनुष्य की मृत्यु के बाद आत्मा की पुनः यह कोशिश रहती है की वह उस शरीर मे वापस चली जाए जिस शरीर से वह बाहर आई है परन्तु ऐसा सिर्फ महसुस होता है वास्तव मे यह नही होता।
धीरे-धीरे व्यक्ति की आत्मा यह स्वीकर करने लगती है कि अब जाने का वक्त हो गया है। मोह का बंधन कमजोर होने लगता है और वह मृत लोक विदा होने के लिए तैयार हो जाती है।

शरीर की मृत्यु जाने के बाद आत्मा अपने परिजनों को रोते बिलखते देखती है। जिसके कारण वह बहुत ज्यादा दुखी होती है और कुछ भी दुख से व्याकुल होकर होती है।

लेकिन उसके वश में कुछ नहीं होता है क्योंकि वह खुद ही एक बेजान और लाचार सी होती है। मनुष्य को अगला जन्म होगा या नही यह तय करता है उसके पाप व पून्य, आत्मा कुछ समय बाद मृत्यु लोक की रेखा को पार कर ऐसी जगह चली जाती है जहाँ रहतो है सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा, जहा उनके कर्मा का निर्धारण होता है।