सभी के जीवन में मुश्किल घड़ी आती है कोई उसका सामना करता है तो कोई नहीं कर पाता है। आज हम एक ऐसी ही शख्सियत के बारे में बताने जा रहे है जो अब दूसरों के लिए प्रेरणा बन गए है। दरअसल बांग्लादेश के साथ 1971 के युद्ध में घायल पिता की मौत के बाद सुदीप दत्ता को दोस्तों ने मुंबई जाने की सलाह दी। पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर के रहने वाले सुदीप के लिए यह मुश्किल भरा समय था। वे मुंबई आ गए।

15 रुपये की दिहाड़ी करने वाले सुदीप ने नुकसान दर्ज कर रही फैक्ट्री के मालिक से पार्टनरशिप कर ली। आज सुदीप की बदौलत फैक्ट्री का कारोबार 1600 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।
आपको बता दे कि साल 1988 में मुंबई जाने के बाद उन्होंने रोज 15 रूपये की मजदूरी वाला काम ढूंढा और काम करना शुरू कर दिया।

वहां वे पैकिंग लोडिंग और डिलवरिंग का कार्य करते थे इस काम को करते हुए वो इस कार्य की बिजनेस के बारे में जानने लगे थे।उस कंपनी में उनके साथ समान काम करने वाले कुल 12 मजदुर थे वो समय उनके जीवन का कठिन समय था
एक ही कमरे में सभी लोगो का रहना खाना पीना होता था। ऐसी स्थिति में उन्होंने करीब 3 साल वहां गुजारे। 3 साल बाद यानी 1991 में सुदीप दत्ता जिस कंपनी में काम कर रहे थे उस कंपनी के मालिक को बिजनेस में भारी नुकसान हो गया और तब कंपनी के मालिक ने इस फैक्ट्री को बंद करने का निर्णय लिया।

ऐसे में सुदीप ने फैक्ट्री ख़ुद चलाने का फ़ैसला किया और 16000 रुपए की राशि जमा की। उस समय वे ख़ुद अपने आप को नहीं पाल सकते थे, इतने कठिन हालातों से गुजरने के बावजूद भी सुदीप जी ने फैक्ट्री के सात मजदूरों के परिवार की जिम्मेदारी ली।
सुदीप को फैक्ट्री खरीदने के लिए सुदीप को दो साल का मुनाफा मालिकों को बांटने का वादा करना पड़ा क्योंकि 16000 की राशि बहुत कम थी। इस प्रकार सुदीप जी उसी फैक्ट्री के मालिक बने जिसके वह कभी मज़दूर थे।

एल्युमीनियम पैकेजिंग इंडस्ट्री उस समय अपने बुरे दौर से गुजर रही थी। सुदीप यह जान गए थे बेहतर उत्पाद और नयापन ही उन्हें दूसरों से बेहतर साबित करेगा। उनकी मेहनत और संभाषण कौशल ने तब रंग लाया जब उन्हें सन फार्मा, सिपला और नेसले जैसी बड़ी कंपनियों से छोटे-छोटे आर्डर मिलने शुरू हो गए।