इस आधुनिक युग में एक ओर लोगों को सुविधाएं देने के लिए नई नई टेक्नोलॉजी विकसित की जा रही है। इसको देखकर यही लगता है कि जैसे धीरे धीरे खेती करने वाले किसान बहुत ही कम रह जाएंगे। इसकी वजह से राष्ट्रीय संगोष्ठियों और चिंतन बैठकों में अक्सर खेती को लेकर चिंता जताई जाती है। उनका मानना है कि खेती घाटे का कारोबार बनती जा रही है। लेकिन हरियाणा में स्थिति इसके बिलकुल विपरीत है। वहां खेती लगातार किसानों के लिए लाभ का सौदा बन रही है। तीन साल पहले तक जिस किसान की मासिक आय 14 हजार 434 रुपये हुआ करती थी आज उस किसान की जेब में हर महीने 22 हजार 841 रुपये आ रहे हैं। किसानों की आमदनी बढ़ने के कई कारण है।
पहला कारण तो यह है कि खुले बाजार में किसानों को गेहूं सरसों और कब पास सहित करीब आधा दर्जन फसलों का मूल्य न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक मिल रहा है। वही दूसरे कारण की बात करें तो किसानों ने खेती के परंपरागत तरीकों में बदलाव किया है। उन्होंने आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल अधिक किया है। फसल विविधीकरण पशुपालन, मत्स्य पालन, बागवानी और मसाला उत्पादन पर जोर दिया है।
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नेशनल सैंपल सर्वे आर्गनाइजेशन की मानें तो आज हरियाणा उन तीन प्रदेशों में शामिल हो गया है, जहां किसान परिवारों की मासिक आय 20 हजार रुपये से ज्यादा है। वहीं इसकी दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश में किसान परिवारों की मासिक आय 8,061, मध्य प्रदेश में 8,339, आंध्र प्रदेश में 10,480 और महाराष्ट्र में 11,492 हजार रुपये आंकी गई है। ये सभी राज्य हरियाणा की अपेक्षा बड़े हैं।
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लेकिन जिस तरह युवा खेती के प्रति आकर्षित हो रहे हैं और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के साथ-साथ नई तकनीक का इस्तेमाल करने पर जोर दिया है। युवाओं की खेती में ऐसी रुचि देखकर किसानी और खेती का भविष्य सुरक्षित नजर आने लगा है। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार पिछले तीन साल में देश में 17,299 हजार किसानों ने आत्महत्या की है। उसके तमाम अलग-अलग कारण हो सकते हैं, लेकिन खुशी की बात तो यह है कि इनमें हरियाणा का एक भी किसान नहीं है।
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बता दें कि हरियाणा का कुल क्षेत्रफल एक करोड़ 10 लाख 53 हजार एकड़ का है और 37.59 लाख हेक्टेयर जमीन पर केवल खेती की जाती है, जो कुल क्षेत्रफल का 85.03 प्रतिशत है। गेहूं, धान, जौ, बाजरा, मूंग, मूंगफली, सरसों, मक्का, उड़द, तिल, चना, अरहर, कपास और सूरजमुखी सहित 14 फसलों की खरीद वहां एमएसपी पर होती है, जो देश में सबसे ज्यादा है।
पिछले चार वर्षो में ही गेहूं और धान की फसलें बेचकर किसानों ने एक लाख दो हजार 436 करोड़ रुपये कमाए हैं। इसी तरह 21 बागवानी फसलों को भावांतर भरपाई योजना में शामिल किया गया है, जिसके तहत मंडियों में फलों और सब्जियों की कीमत कम होने पर घाटे की भरपाई सरकार की ओर से की जाती है।
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हरियाणा की जमीन काफी उपजाऊ मानी जाती है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के नजदीक होने की वजह से वहां जमीन की कीमत बहुत अधिक है। राज्य में नौ लाख 82 हजार 730 एकड़ जमीन ऐसी है, जो सेमग्रस्त, लवणीय अथवा क्षारीय है। यानी इस जमीन पर कोई फसल नहीं हो सकती। यदि इस जमीन की सेहत में सुधार हो जाए तो किसानों की आय में बढ़ोतरी होने के साथ ही राज्य में अन्न की कुल पैदावार भी बढ़ जाएगी। हरियाणा भूमि सुधार निगम के माध्यम से प्रदेश सरकार ने इसकी शुरुआत कर दी है।
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हरियाणा राज्य सार्वजनिक उपक्रम ब्यूरो के चेयरमैन सुभाष बराला ने इस जमीन सुधार कार्यक्रम को अपने हाथों में लिया है। सुभाष बराला की कोशिश है कि मुख्यमंत्री से मिलकर जमीन को उपजाऊ बनाने की दिशा में गंभीरता के साथ आगे बढ़ा जाए।
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हरियाणा सरकार ने किसानों की सेमग्रस्त, लवणीय और क्षारीय जमीन की सेहत में सुधार के लिए एक पोर्टल तैयार किया है, जिस पर कोई भी किसान अपना रजिस्ट्रेशन कराकर सरकार से जमीन सुधार का अनुरोध कर सकता है। सुभाष बराला के अनुसार इसका करीब 80 से 90 प्रतिशत पैसा सरकार खर्च करेगी और किसानों को मामूली भुगतान देना पड़ेगा। राज्य सरकार चूंकि मुफ्तखोरी के सख्त खिलाफ है, इसलिए किसानों से मामूली भुगतान करने को कहा गया है।
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कल्पना कीजिए कि यदि इतनी जमीन में सुधार हो गया तो राज्य में हरित क्रांति कितनी तेजी से फैलेगी और किसानों की जेब के साथ सरकार के अन्न भंडार भरने में बहुत अधिक मदद मिलेगी। अगर कोई किसान धान की जगह एग्रो फारेस्ट्री को अपनाता है तो उसे प्रति एकड़ 400 पेड़ लगाने पर 10 हजार रुपये मिलेंगे।
इसी तरह मेरा पानी-मेरी विरासत योजना के तहत धान के बजाय कम पानी के इस्तेमाल वाली फसलें बोने पर किसानों को सात हजार रुपये प्रति एकड़ मदद दी जा रही है। पिछले साल सवा लाख से अधिक एकड़ जमीन पर किसानों ने धान के बजाय दूसरी फसलें लगाईं। अब प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने में जुटी प्रदेश सरकार।