हर माता पिता का सबके अहम पल होता वो है बच्चा होना। जब बच्चा पैदा होता है तो उसके रोने को लेकर आपने तरह-तरह की बातें सुनी होंगी। कोई इसे पौराणिक काल से जुड़ी बात मानता है, तो इसका साइंटिफिक कारण भी है। कई बार बच्चा जब जन्म के तुरंत बाद रोता नहीं है, तो डॉक्टर या नर्स उसे किसी तरह रुलाते हैं।
शिशु जब मां के गर्भ में होता है, तब वह सांस नहीं लेता। वह एम्नियोटिक सैक नामक एक थैली में होता है, जिसमें एम्नियोटिक द्रव भरा होता है। उस समय शिशुओं के फेफड़ों में हवा नहीं होती है। उनके फेफड़ों में भी एम्नियोटिक द्रव भरा होता है।

इस स्थिति में बच्चे के सारा पोषण अपनी मां के द्वारा गर्भनाल के जरिये मिलता है। मां के शरीर से बच्चे के बाहर आते ही गर्भनाल काट दी जाती है।इसके बाद शिशु को उल्टा लटकाकर उसके फेफड़ों से एम्नियोटिक द्रव निकालना जरूरी होता है, ताकि फेफड़े सांस लेने के लिए तैयार हो सकें और वायु का संचार होने लगता है।
तो ऐसे समय जब बच्चा बाहर निकलता है तब वो रोता है। ये रोने की प्रक्रिया काफी सेहतमंद होता है इसके चलते फेफड़े भी पूरी तरह से सांस लेने के लिए तैयार हो जाते है। बच्चा गर्भ से निकलने के बाद रोने की प्रक्रिया काफी ज्यादा महत्वपूर्ण है।

क्योंकि इसी के बाद रोते समय बच्चा गहरी सांस लेता है और अगर वो तुरंत नहीं रोता तो उसे हल्का पीछे की तरह मारा जाता है ताकि बच्चा रोये। इसके अलावा मां के गर्भ में और बाहर के वातावरण में बच्चे की दुनिया बेहद अलग होती है।
प्रसव के समय हर मां को उतनी ही तकलीफ होती है जितनी कि बच्चे को। ऐसे में बच्चा गर्भ से बाहर आने के बाद सारी प्रक्रिया को करता है। गर्भ से निकलते ही बच्चे का रोना हर माता पिता के लिए सौभाग्य की बात होती है।

क्योंकि इसी आवाज को सुनने के लिए हर एक मां 9 महीने तक इंतजार करती है। कभी कभी ऐसी भी स्थिति आती है जब बच्चा नहीं रोता तो उस समय पर डॉक्टर बच्चे को ऑक्सीजन देकर जिंदा करते है।