वायु प्रदूषण का एक बड़ा कारण पराली भी है और हरियाणा और पंजाब में तो यह एक गंभीर विषय है। फसल कटाई के बाद जब किसान पराली को जला देते हैं तो उससे निकलने वाला धुआं लोगों को बुरी तरह से प्रभावित करता है। आंखो में जलन से लेकर कई गंभीर बीमारियों का शिकार बन जाते हैं लोग। केवल हरियाणा-पंजाब हो नहीं बल्कि राजधानी दिल्ली को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। हर साल किसान पराली जलाते हैं और हर साल प्रदूषण का स्तर बढ़ता जाता है।
प्रदूषण की वजह से और क्वालिटी इंडेक्स काफी खराब श्रेणी में आ जाती है। चारों तरफ सिर्फ स्मॉग ही नजर आता है। आज हम आपको दो ऐसे शख्स के बारे में बताएंगे जिन्होंने पराली का इस्तेमाल कर के एक ऐसी चीज बना डाली जिसे देख हर कोई हैरान रह गया। हर तरफ इन्हीं की चर्चा हो रही है।

यह दोनों शख्स हरियाणा के हिसार के रहने वाले हैं और इनका नाम मनोज नेहरा और विजय श्योराण है। जो अपने आविष्कार की वजह से काफी सुर्खियों में हैं। दोनों की इस कोशिश से किसानों को अब पराली जलाने की जरूरत नहीं होगी। इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में उन्हें करीब दो साल का समय लग गया था।

जैसा कि हम सब जानते हैं पराली एक बड़ी और गंभीर समस्या है। किसान हर साल पराली जला देते हैं जिससे पूरा वातावरण प्रदूषित हो जाता है। लेकिन अब हरियाणा के दो युवकों ने इस समस्या को हल करने का प्रयास किया है। दोनों युवक अब पराली से बायो कोयला बना रहे हैं। हालांकि ये सब उनके लिए भी आसान नहीं था लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और इस समस्या को हल करने का इरादा मजबूत किया और आज वह अपने मिशन में कामयाब भी हो गए।

दरअसल हम पराली की बात कर रहे हैं लेकिन बहुत कम लोग पराली के बारे में जानते हैं। तो सबसे पहले हम आपको पराली के बारे में बता देते हैं। पराली धान की फसल की कटाई के बाद बचा हुआ अवशेष होता है। इसकी जड़े धरती में होती हैं। फसल के लिए ऊपर से कटाई कर ली जाती है और इस अवशेष को जला दिया जाता है। ऐसे में वायु प्रदूषण की समस्या पैदा होती है। लेकिन अब मनोज नेहरा और विजय श्योरण ने इसका समाधान निकाल लिया है।
कैसे तैयार करते हैं बायो कोयला?

बता दें कि मनोज और विजय पिछले दो सालों से ही पराली से बायो कोयला बनने का प्रयास कर रहे हैं। अब वे इसमें कामयाबी भी हासिल कर चुके हैं। इस कोयले को दोनों ने फार्मर कोल का नाम दिया है। दोनों पराली से ही कोयला बनाते हैं। इसके लिए गाय के गोबर से बनी कम्पोस्ट में सबसे पहले पराली को मिलाया जाता है और फिर ब्रिकेटिंग मशीन से ही कोयले को तैयार किया जाता है। सबसे पहले पराली को ग्राइंडर में पीसा जाता है।

इसके बाद 70% पराली में 30% पशुओं का कंपोस्ट मिलाया जाता है। इस मिश्रण को ब्रिकेटिंग मशीन में डालकर छोटे छोटे पैलेट में तब्दील कर लिया जाता है। इन पैलेट को ही कोयले में तब्दील किया जाता है। वहीं अब इस तकनीक से किसानों को भी काफी लाभ हो रहा है। अब किसान भी पराली को जलाते नहीं हैं जिससे उनकी जमीन की उर्वरता भी बनी रहती है।
कम हो रहा वायु प्रदूषण

दोनों का कहना है कि उनके मुताबिक पराली के जलने से दिल्ली के इलाकों में भी वायु प्रदूषण हो जाता था। ऐसे में सांस लेने में भी काफी परेशानी हो जाती थी। लेकिन अब उनके इस प्रयास से 50% वायु प्रदूषण में भी कमी आई है। वहीं जहां पर काले कोयले क्ला उपयोग होता है उन्हें दोनों युवक 20 रूपये प्रति किलो के हिसाब से बायो कोयला बेच रहे हैं।
ग्राहकों को आ रहा रास

अब तक दोनों 250 टन से ज्यादा का बायो कोयला बनाकर अलग-अलग शहरों में बेचकर अच्छी खासी कमाई कर चुके हैं। वहीं ग्राहकों को भी उनका ये बायो कोयला काफी पसंद आ रहा है। इस कोयले की क्लोरिफिक वैल्यू भी 5 हजार बताई जा रही है जो साधारण कोयले से काफी अच्छी भी है।
एक एकड़ से बनता है तीन टन कोयला

इस तरह का कोयला बनाने में हर महीने लगभग ढाई सौ एकड़ पराली का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे में यदि इस तकनीक को और भी बढ़ावा मिले तो पराली को जलाना भी बंद हो जाएगा और वायु प्रदूषण जैसी समस्या भी पैदा नहीं होगी। उन्होंने बताया कि एक एकड़ पराली से करीब 3 टन कोयला बनाया जा सकता है।