लीक में रहकर तो काम हर कोई करता है लेकिन जिसने भी लीक से हटकर काम किया है उसने नया आयाम स्थापित किया है। पारंपारिक खेती बाड़ी जब घाटे का सौदा बनने लगी व पैदावार घटने लगी तो ढाणी गोपाल के किसान शुभम जाखड़ ने आडू व अमरुद का बाग लगाने की ठानी। शुरुआत में साथी किसानों ने प्रयोग को लेकर डराया भी, लेकिन शुभम जाखड़ आगे बढ़ते रहे। आज आडू व अमरूद के दो एकड़ बाग से साढ़े छह लाख रुपये की सालाना आमदनी कर रहे है।
बीए पास किसान शुभम जाखड़ बताते है कि अब दो एकड़ के बाग से अच्छी खासी आमदनी हुई तो उन्होंने साढ़े पांच एकड़ जमीन पर ओर बाग लगा दिया है, अगली साल तक वो भी फल देना शुरू कर देगा। अब उनके पास साढ़े सात एकड़ में बाग हो गया है।
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उनका कहना है कि धान व गेहूं की खेती पानी ज्यादा मांगती है, इससे जलस्तर घटता जा रहा था। उस जलस्तर को बचाने के लिए बागवानी की तरफ रूझान बढ़ाया है। अमरूद व आडू का बाग लगाकर अन्य किसान भी अच्छी आमदनी कर सकते हैं। पानी की बचत में बागवानी खेती सबसे बेहतर है।किसान बताते है कि उन्होंने अपने बाग में शान- ए- पंजाब व नकटीन आडू व हिसार सफेदा अमरूद की किस्म के पौधे लगाए हुए है।
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किसान बताते है कि उन्होंने दो एकड़ के बाग में 700 पौधे लगाए हुए हैं। अब सालाना दो एकड़ के बाग से आडू के ठेके से चार लाख दस हजार रुपये व अमरूद का ढाई लाख रुपये की कमाई हाे रही है। बाग में पौधों की निराई, गुड़ाई समय पर करते है। 2018 से गेहूं व धान की फसल छोड़कर बागवानी की खेती शुरू की थी।
हिसार सफेदा किस्म का अमरूद 10 महीने तक फल देता है। इस अमरूद में कीड़ा नहीं लगता है। सबसे ज्यादा इस अमरूद की डिमांड रहती है। गोबर के खाद का प्रयोग किया जाता है। जैविक खाद ही पूरे के बाग पौधों में देते हैं, यूरिया खाद का एक दाना भी इस्तेमाल नहीं होता।
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किसान शुभम जाखड़ बताते है कि उनको आडू व अमरूद बेचने के लिए मंडी में नहीं जाना पड़ता है। खेत से ही व्यापारी खरीदकर ले जाते है। पंजाब व हरियाणा के हिसार, नरवाना,जींद सिरसा व फतेहाबाद सहित कई जिलों की मंडियों में ठेकेदार द्वारा आडू व अमरूद की सप्लाई हो रही है। वहीं पंजाब के जालंधर, अमृतसर, बठिडा शहर से आडू व अमरूद के व्यापारियों की अच्छी खासी डिमांड रहती है।
ट्रायल में है देव
किसान शुभम जाखड़ ने बताया कि वर्ष 2018 में दो एकड़ में शान ए पंजाब व नकटीन वैरायटी के आडू व हिसार सफेदा अमरूद का बाग बैजलपुर की प्रगतिशील किसान विजेंद्र सिहाग के कारोबार से प्रभावित होकर लगाया था। लेकिन मात्र डेढ़ वर्ष बाद ही पहले सीजन में आडू के बाग में एक लाख 70 हजार रुपये तथा अमरूद के बाग में ढाई लाख रुपये का मुनाफा हुआ।
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बागवानी में आमदनी बढ़ती देख वर्ष 2021 में डेढ़ एकड़ में आडू व आलू बुखारा के पौधे लगाए। वर्ष 2022 जनवरी में 3 एकड़ में आडू व एक एकड़ में आलू बुखारा बाग लगा दिया है। वहीं सेब की 3 किस्मों के 60 पौधे ट्रायल पर खेत में लगाए गए हैं। इनमें हरमन 99 व गोल्डन डोरसेट तथा अन्ना किस्में शामिल है।
किसान ने बताया कि अगर सेब की पैदावार अच्छी निकलती है तो 5 एकड़ में सेब का बाग लगाया जाना प्रस्तावित है। किसान ने बताया कि गेहूं व धान परंपरागत खेती में आमदनी कम और खर्चा ज्यादा हो जाता है। इसलिए किसान घाटे से उबर नहीं पाता। किसानों को परंपरागत खेती सेट करें मुनाफा वाली फसलों की तरफ रुझान करना वर्तमान के हालात हैं।
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किसानों के लिए बागवानी में कम खर्च पर ज्यादा लाभ किसानों को बागवानी एवं सब्जियों के प्रति रुझान बढ़ाना चाहिए। क्योंकि बागवानी में कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है। बाग के पौधों के साथ-साथ सहफसली भी ली जा सकती है।
बाग में सब्जियों के अतिरिक्त कई दूसरी फसलों की भी पैदावार ली जा सकती है। इसलिए किसानों को मुनाफा की तरफ खेती-बाड़ी का रुझान करना चाहिए। – डॉक्टर सुभाष चंद्र, डिप्टी डायरेक्टर बागवानी भूना