एक ओर देश में सांपों को देवता माना जाता है वहीं दूसरी ओर डर के कारण कई लोग सांपों को मार देते हैं। लेकिन हरियाणा में एक ऐसा गांव है जहां सदियों से लोग सांपों के साथ आराम से रहते हैं यह सब को कभी भी मारा नहीं जाता इस गांव में एक अलग ही तरह की परंपरा चली आ रही है वही आज तक इस गांव में सांप के काटने से किसी भी व्यक्ति की मौत नहीं है सांप के काटने के मामले अक्सर सामने आते रहते हैं लेकिन उन्हें मारा नहीं जाता। इसके पीछे भी एक अनोखी कहानी है जो हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से बताएंगे। इस अनोखी कहानी को जानने के लिए खबर अंत तक पढ़े।
बता दें कि रोहतक जिले के गांव रोहेड़ा में सांपों को मारा नहीं जाता। पिछले 300 साल से गांव में एक अनोखी परंपरा चली आ रही है। सांप को मारना बहुत ही बड़ा पाप समझा जाता है। यहां आए दिन सांप लोगों को काटते रहते हैं। लेकिन आज तक गांव में सांप के काटने से किसी भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई है।
गांव के सरपंच ने बताया कि करीब 300 साल पहले कुंडू गौत्र के बुजुर्ग गांव घोघड़िया से आकर यहां बसे थे। उन्हीं आकर यहां से इसका नाम लखमीर रखा गया था। कहा जाता है कि उस महिला की कोख से एक बच्चे के साथ साथ सांप ने भी जन्म लिया था।
उस महिला ने सांप का पालन पोषण बिल्कुल अपनी औलाद की तरह किया। भाद्र मास की चौथ के दिन जब वह महिला खेतों में काम करने गई तो इस दौरान उसने अपने बेटे और सांप को एक ही पालने में सुला दिया। इसी बीच महिला का भाई अचानक गांव आया और अपनी बहन को घर में न पाकर वह भी खेत चला गया।
तब महिला के भाई ने देखा कि पालने में उसके भांजे के साथ एक सांप भी है। खतरा जानकर उसने सांप को मार दिया और इसके तुरंत बाद महिला के बेटे की भी मौत हो गई। यह सब देखकर महिला आग बबूला हो गई और रोते रोते भाई से कहा कि तूने सांप के साथ मेरे बेटे को भी मार डाला है।
तू भविष्य में इस दिन कभी भी मेरे घर मत आना, क्योंकि इस दिन तुझे मेरे घर से अन्न, जल तक नहीं दिया जाएगा। तब से लेकर आज तक जिस दिन सांप किसी को काट लेता है तो उस दिन कुंडू गोत्र के लोग किसी मेहमान, आगंतुक अथवा भिखारी को भी खाना नहीं देते। उसी दिन से कुंडू गौत्र में यह परंपरा बनी कि कोई भी व्यक्ति सांप को नहीं मारेगा।
मान्यता है कि इस गांव में सांप के काटने से कुंडू गौत्र के लोगों की मौत नहीं होती। अगर कोई सांप किसी व्यक्ति को काट भी लेता है तो उसे घर में ही जमीन पर लेटाकर महिलाओं द्वारा गीत गाकर उसका उपचार किया जाता है। इसके बाद व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है। ठीक होने पर उसे नागदेव के मंदिर में ले जाकर दर्शन कराए जाते हैं।
सरपंच ने आगे कहा कि इतिहास गवाह है 300 साल से यहां सांप के काटने से किसी की भी मृत्यु नहीं हुई। हर तीन साल बाद भाद्र मास की पंचम को नागदेव के मंदिर में विशाल भंडारा किया जाता है। इसमें उस दौरान पैदा हुए बच्चों को शामिल किया जाता है। अब तो यहां सांप लोगों के दोस्त बनकर रहते हैं। लोग उन्हें अपने बच्चों की तरह पालते हैं।