बिहार प्राचीन काल से समृद्ध संस्कृति वाला राज्य रहा है। रामायण काल से लेकर महाभारत तक में बिहार का जिक्र आया है। कई धर्मों का जन्म भी इस राज्य से हुआ है। इसी राज्य में एक प्राचीन मंदिर कैमूर जिले में स्थित है। इस मंदिर का संबंध मार्केण्डेय पुराण से भी है जिसमें शुंभ-निशुंभ के सेनापति चण्ड और मुण्ड के वध की कथा मिलती है। देवी के इस मंदिर में प्राचीन शिवलिंग का चमत्कार भक्तों को दिखता है तो माता की अद्भुत शक्ति की झलक भी यहां दिख जाती है।

वैसे दुनिया में कई ऐसे चमत्कारी मंदिर है जहां पर श्रद्धालुओं का तांता लगता है। भारत के प्राचीन मंदिरों मे शुमार यह मंदिर कैमूर पर्वत की पवरा पहाड़ी पर है। मां मुंडेश्वरी के मंदिर में कुछ ऐसा होता है जिस पर जिसपर किसी को भी विश्वास नहीं होता।
श्रृद्धालुओं के अनुसार मंदिर में बकरे की बलि की प्रक्रिया बहुत अनूठी और अलग है। यहां बलि में बकरा चढ़ाया जाता है, लेकिन उसका जीवन नहीं लिया जाता बल्कि उसे मंदिर में लाकर देवी मां के सामने खड़ा किया जाता है,

जिस पर पुरोहित मंत्र वाले चावल छिड़कता है। उन चावलों से वह बेहोश हो जाता है, फिर उसे बाहर छोड़ दिया जाता है। इस चमत्कार को देखने वाले अपनी आंखो पर यकीन नहीं कर पाते हैं। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता पशु बलि की सात्विक परंपरा है।

यह मंदिर कैमूर जिले के भगवानपुर अंचल में पवरा पहाड़ी पर 608 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर परिसर में विद्यमान शिलालेखों से इस मंदिर की ऐतिहासिकता प्रमाणित होती है।

1868 से 1904 ई. के बीच कई ब्रिटिश विद्वान् व पर्यटक यहां आए थे। वहीं मंदिर के केयर टेकर अजहरउद्दीन ने बताया कि सालों से मुंडेश्वरी माता मंदिर का संरक्षक एक मुस्लिम परिवार है। दुर्गा का वैष्णवी रूप ही मां मुंडेश्वरी के रूप में यहां प्रतिस्थापित है। मुंडेश्वरी की प्रतिमा वाराही देवी की प्रतिमा है, क्योंकि इनका वाहन महिष है। मुंडेश्वरी मंदिर अष्टकोणीय है।