कपालमोचन स्थित प्राचीन सूर्यकुंड मंदिर में पुराना कदम का पेड़ हैं। इसकी उम्र का ठोस प्रमाण नहीं है, लेकिन इस पेड़ से हरियाणा ही नहीं पंजाब, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश व उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों के लोगों का रिश्ता हैं। ये लोग हर साल पेड़ से मिलने से आते हैं। अपनी सुख दुख की सुनाते हैं और फिर से आगे साल आने का वायदा कर चले जाते हैं। पुराने पेड़ के प्रति लोगों की गहन आस्था हैं। दूर दराज से आए श्रद्धालु इसकी छांव में बैठकर धर्म समाज व प्राचीन ऐतिहासिक धर्मग्रंथों पर विचार विमर्श करते हैं।
कार्तिक माह में इस पेड़ की विशेष पूजा जाता है। सूरजकुंड के महंत विजय शर्मा के मुताबिक कपालमोचन मेले के दौरान आसपास के प्रदेशों से लाखों श्रद्धालु मंदिर में पेड़ की पूजा अर्चना के लिए पहुंचते हैं।
विजय शर्मा बताते है कि उनके पिता प्रेम चंद शर्मा मोदगिल का बचपन इस पेड़ की नीचे बीता हैं। वह इस पेड़ की कहानियां उनको सुनाया करते थे। अब उनके बच्चे भी यहां पर आते हैं। तीन पीढ़ियों से यह सिलसिला चल रहा है।
यह है मान्यता
कार्तिक पूर्णिमा पर मेले के दौरान लाखों श्रद्धालु कदम के पेड़ की पूजा अर्चना करते हैं। ऐतिहासिक मान्यता है कि इसी पेड़ के नीचे माता कुंती ने सूर्य देवी की तपस्या की थी। जिससे कर्ण नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई थी। मेले के दौरान भी महिलाएं इस पेड़ पर सूत बांध कर पुत्र प्राप्ति की कामना करती हैं। मुराद पूरी होने पर भी श्रद्धालु यहां आते हैं।
होता है अलग एहसास
समाजसेवी पंकुश खुराना ने बताया कि वह कई वर्षाें से मंदिर में लगातार पूजा अर्चना के लिए आते हैं। मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही सुकून की अनुभूति होती है। वैसे तो मंदिर में दूधाधारी की समाध, सूरजकुंड प्राचीन सरोवर भी स्थित है, लेकिन कदम के पेड़ के समीप पहुंचते ही अलग एहसास होता है।
प्रत्येक पेड़ पौधे का है अपना अलग महत्व
कपालमाेचन की धरा ऋषि मुनियों व तपस्वियों की धरा रही है। यहां पर प्रत्येक पेड़ पौधे व धार्मिक मंदिर का अपना अलग महत्व है। सूरजकुंड के किनारे स्थित कदम के पेड़ की महत्ता बहुत ज्यादा है।
प्राचीन सूरजकुंड सरोवर के समीप अनेक आम, आवले, जामुन, त्रिवेणी व अन्य छाया वृक्ष खडे़ हैं, लेकिन सरोवर के एक किनारे पर राधा कृष्ण मंदिर के समीप स्थित कदम का पेड़ सबसे पुराना है।