महामारी की दूसरी लहर बड़ी भयावह है। इस बढ़ते कहर के बीच स्वास्थ्य सुविधाओं की बड़ी कमी देखने को मिल रही है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से लेकर छोटे शहरों में भी अस्पतालों में बेड, दवाओं और ऑक्सीजन की कमी से मरीज परेशान हो रहे हैं। कोरोना से बेहाल मरीजों को ना तो ना तो अस्पताल में बेड नसीब हो रहे हैं और ना ही अस्पताल तक जाने के लिए एंबुलेंस।
ऐसे में उत्तर प्रदेश के वाराणसी से एक ऐसी तस्वीर सामने आई है, जिसे देखने से साफ जाहिर होता है कि मदद करने के लिए सिर्फ आर्थिक रूप से ही मजबूत होना नहीं, बल्की मन से मजबूत होना भी जरूरी है। जी हां काशी का एक युवा अमन कबीर रोज सड़कों से लेकर अस्पताल तक, घाट से श्मशान तक लोगों की मदद करते आपको दिख जाएगा।

बड़ी बात ये है कि अमन ऐसे शवों का दाह संस्कार कर रहे हैं, जिनकी मौत कोरोना की वजह से हुई है।ऐसे समय में तो रिश्ते नाते भी काम नहीं आ रहे है लेकिन अमन ने जो कर दिखाया वाकई तारीफ के काबिल है। अमन ने गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया, ” वर्ष 2007 में मैं सातवीं कक्षा में पढ़ता था।

23नवंबर 2007 को कचहरी परिसर में एक बम विस्फोट हुआ था। मुझे जब इसकी जानकारी हुई तो मैं शिव प्रसाद मंडलीय अस्पताल पहुंचा, जो मेरे स्कूल के पास था। मैं वहां इलाज के लिए लाए गए घायलों की मदद करने लगा।

मुझे लोगों की मदद करने में काफी खुशी मिल रही थी। उस घटना ने मेरे जीवन को बदल दिया। तभी से मैंने बेसहारा, गरीब, लावारिश लोगों की मदद करने को जीवन का लक्ष्य बना लिया।”
गर्मी हो, सर्दी हो या बारिश हर मौसम में किसी असहाय के तड़पने की सूचना मिलते ही अपना बैग लेकर दौड़ पड़ता हूं। सबसे पहले पीड़ित के घाव साफ करता हूं, मरहम-पट्टी करता हूं और जरूरत पड़ने पर उसे अपनी बाइक एंबुलेंस से लेकर अस्पताल पहुंचाता हूं। मैं तब तक उसकी सेवा करता रहता हूं जब तक वह स्वस्थ नहीं हो जाता या उसके कोई परिजन नहीं आ जाते।