बतादें मछुआरे अपने जीवन को दांव पर लगाकर मछली पकड़ते हैं, और अपनी आजीविका चलाते हैं, लेकिन इसी के साथ वो सरकारों से भी बहुत उम्मीद करते हैं, लेकिन उन्हें उनकी उम्मीद के मुताबिक कुछ भी मिल नहीं पाता है। उन्हें सिर्फ उतना ही मिल पाता है, जितनी वो खुद मेहनत कर लेते हैं। इसी के तहत बतादें कि मछुआरों की जीविका को सुधारने में सरकारें बहुत कम महत्त्व दिया जाता है। मछुआरे और मत्स्य कृषक मछली सम्पत्ति और देश की अर्थव्यवस्था के बीच की एक अनिवार्य कड़ी होते हुए भी उनके आवश्यकताओं और हितों पर बहुत कम मान्यता दी गई है।
ऐसी स्थिति के लिये कई अन्तरनिहित बातें संजात हुई हैं और इनमें सुधार लाने के लिये अनुसन्धानकर्ताओं, प्रशासकों और नीति बनाने वाले अधिकारियों और गैर सरकारी संगठनों के संयोजित प्रयास की जरूरत है ताकि ये गरीबी, ऋण बाध्यता और बेरोजगारी जैसी बुराईयों से छुटकारा पाया जा सके और उनकी जीविका रीतियों में उन्नयन आ जा सके।
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खैर इन सबके बीच आज हम आपको एक ऐसी महिला मछुआरन के बारे में बताने जा रहे हैं, जो देश की पहली लाइसेंसधारी महिला मछुआरन है। चलिए अब आपको इनके बारे में और भी जानकारी इस ख़बर के माध्यम से बताते हैं।
बतादें ऐसे तो बहुत सी महिलाये हैं, जो मछलियां पकड़ना जानती हैं, लेकिन के.सी. रेखा की बात ही कुछ अलग है। क्योकि वो देश की पहली और इकलौती मछुआरिन हैं, जिसके पास लाइसेंस है। उन्हें सरकार ने समु्द्र में उतरने की अनुमति दी है।
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आप यह सुनकर हैरान हो जायेंगे कि केरल की के.सी. रेखा से पहले किसी भी औरत को भारत के अंतर्राष्ट्रीय बॉर्डर पर मछली पकड़ने का लाइसेंस नहीं मिला था। केरल के स्टेट फ़िशरीज़ डिपार्टमेंट ने रेखा को ‘डीप शी फिशिंग लाइसेंस’ दिया है।
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इस लाइसेंस के मिलने के बाद प्रिमियर मरीन रिसर्च एजेंसी ‘द सेंट्रल मरीन फिशरीज़ रिसर्च इंस्टीट्यूट’ ने रेखा को सम्मानित भी किया। 45 साल की के. सी. रेखा केरल राज्य के थ्रिशूर जिले के गांव ‘चवक्कड़’ की रहने वाली हैं। अरब सागर में मछली पकड़ने का काम करती हैं।
बता दें कि रेखा का परिवार पहले से इस व्यवसाय में है पर लेकिन कभी भी रेखा ने समुद्र में उतरने का प्रयास नहीं किया था। चवक्कड़ गांव में रेखा अपने पति पी. कार्तिकेयन और बेटियों के साथ सुखी जीवन जी रही थीं। साल 2004 में सुनामी के आने के बाद से समुद्र में हालात ख़राब हो गए।
फिर भी रेखा के पति अपने साथियों के साथ काम को दोबारा जमाने की कोशिश करते रहे। लेकिन लगभग 10 साल पहले पी. कार्तिकेयन के दोनों साथी आर्थिक तंगी और समुद्र का विकराल स्वरूप के चलते काम छोड़कर चले गए।
अकेले समुद्र में नाव उतराना बस में नहीं था, तभी हमेशा-हमेशा के लिए साथ देने के लिए उनकी धर्मपत्नि ही उनके साथ हमेशा के लिए साथ आ गईं और उन्होंने ये साबित कर दिया कि एक महिला घर में भी परिवार को बना सकती है और बाहर जाकर भी परिवार के लिए काम आ सकती है।
और सब-कुछ बिल्कुल ठीक कर सकती है। और ऐसी ही इस महिला ने करके दिखाया है, जिसकी मिसाल दी जाए तो कुछ अतिश्योक्ति नहीं होगी। हमेशा ही महिला शक्ति ने समय-समय पर अपनी ताकत का लोहा मनवाया है और दुनिया को महिला शक्ति के प्रति जागरूक करने के साथ-साथ उनकी सोच को भी गलत सिद्ध किया है।