दिवाली को रोशनी का त्योहार कहा जाता है और इस दौरान लोग अपने बच्चों के साथ जमकर आतिशबाजी भी करते हैं हालांकि पटाखे छोड़ने से पर्यावरण को काफी नुकसान होता है और ऐसे में इस पर कई राज्यों में हर दिवाली पर बैन भी लगाया जाता है। लेकिन इस बार सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि पटाखों पर किसी तरह की पाबंदी नहीं है। अदालत की ओर से पटाखों को क्लासिफाई किया गया है और बताया गया कि किस तरह के पटाखों पर बैन लगा हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी भी अथॉरिटी को हमारे निर्देशों के उल्लंघन की इजाजत नहीं दी जा सकती है और उत्सव की आड़ में प्रतिबंधित पटाखों के इस्तेमाल की इजाजत नहीं है। कोर्ट ने कहा कि पटाखों के इस्तेमाल पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं है, सिर्फ बेरियम सॉल्ट वाले पटाखे बैन किए गए हैं। अदालत ने कहा कि दूसरों के स्वास्थ्य की कीमत पर उत्सव नहीं मनाया जा सकता।
इसके अलावा कोर्ट की ओर से कहा गया कि पटाखों पर प्रतिबंध के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए सभी राज्य/केंद्र शासित प्रदेश इलेक्ट्रॉनिक/प्रिंट मीडिया, स्थानीय केबल (टीवी) सर्विस का इस्तेमाल होना चाहिए। साथ ही कोर्ट ने कहा कि पटाखों पर प्रतिबंध के उल्लंघन की स्थिति में मुख्य सचिव, सचिव (गृह), पुलिस आयुक्त, जिला पुलिस अधीक्षक, थाना प्रभारी व्यक्तिगत रूप से जवाबदेह होंगे।
शीर्ष अदालत ने कहा कि दूसरों की सेहत की कीमत पर उत्सव नहीं मनाया जा सकता । साथ ही कहा कि उत्सव के नाम पर किसी को दूसरों के स्वास्थ्य के अधिकार का हनन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिला हुआ है और किसी को दूसरों के जीवन से, खासतौर पर वरिष्ठ नागरिकों एवं बच्चों के जीवन से खिलवाड़ की अनुमति नहीं दी जा सकती।
बैंच ने कहा, ‘साफ किया जाता है कि पटाखों के इस्तेमाल पर पूर्ण पाबंदी नहीं है। केवल उस तरह की आतिशबाजी पर रोक है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पाई जाती है और नागरिकों, खासतौर पर वरिष्ठ नागरिकों तथा बच्चों की सेहत पर असर के लिहाज से नुकसानदेह है। ’
शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्यों, एजेंसियों और केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से पटाखों पर प्रतिबंध लागू करने में किसी भी खामी को बहुत गंभीरता से देखा जाएगा।