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किसका है चंडीगढ़? जानें कैसी है इस प्रदेश की कहानी, शाह कमीशन से लेकर लोंगोवाल तक का सफर

जैसा कि सब जानते हैं चंडीगढ़, हरियाणा और पंजाब दोनों की संयुक्त राजधानी है। लेकिन बार-बार दोनों राज्यों की ओर से चंडीगढ़ पर अधिकार की जंग छिड़ी हुई है। एक बार फिर हरियाणा और पंजाब के बीच चंडीगढ़ को लेकर आमने सामने हैं। पंजाब सरकार की ओर से 1 अप्रैल को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर चंडीगढ़ को पंजाब को देने की संबंधी एक प्रस्ताव पारित किया गया। प्रस्ताव के बाद से हरियाणा में हंगामा मचा हुआ है। सभी दल मुखर हो गए। केवल इतना ही नहीं 5 अप्रैल को हरियाणा सरकार ने भी इस मुद्दे पर चर्चा के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया और चंडीगढ़ पर पंजाब के दावे के खिलाफ सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास किया गया।

यह पहली बार नहीं है कि हरियाणा और पंजाब इससे पहले भी यह मुद्दा कई बार उठ चुका है। लेकिन इस बार यह मुद्दा पहले से ज्यादा बड़ा होता दिखाई दे रहा है। एक और पंजाब सरकार यह साफ कह चुकी है कि शुरू से ही चंडीगढ़ पंजाब का हिस्सा रहा है। इसलिए अब उसे पंजाब को पूरी तरह साफ देना चाहिए। वहीं हरियाणा चंडीगढ़ पर अपना दावा कर रहा है।

अब सवाल ये उठता है कि चंडीगढ़ पर आखिर किस का अधिकार है? अगर दोनों राज्यों का है तो किस का कितना हिस्सा है जिस समय चंडीगढ़ को हरियाणा और पंजाब की संयुक्त राजधानी बनाया गया था यह समझौता हुआ था और भविष्य में चंडीगढ़ किसके हिस्से जाना था आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से सिलसिलेवार ढंग से चंडीगढ़ मुद्दे की पूरी कहानी समझाएंगे।

ऐसे बना चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश

बता दें कि आजादी से पहले पंजाब की राजधानी लाहौर हुआ करती थी। लेकिन बंटवारे के बाद पंजाब का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में चला गया और लाहौर भी उसी में था। इसके बाद सन् 1952 में चंडीगढ़ को बसाया गया और चंडीगढ़ को पंजाब की राजधानी बनाया गया। इसके बाद साल 1966 में पंजाब का एक बार फिर से बंटवारा हुआ। जिसके बाद हरियाणा राज्य अस्तित्व में आया। उस समय हरियाणा की राजधानी भी संयुक्त तौर पर चंडीगढ़ को बना दिया गया था। तब से अब तक चंडीगढ़ दोनों प्रदेशों की संयुक्त राजधानी रही है। इसके बाद चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश भी घोषित कर दिया गया था।

80 के दशक में फिर तेज हुई थी मांग

इसके बाद 80 के दशक में एक बार फिर चंडीगढ़ को पंजाब को सौंपने की मांग तेज हो गई। उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अकाली दल के संत हरचरण सिंह लोंगोवाल के बीच इस मामले को लेकर एक समझौता हुआ था। जिसे हम राजीव-लोंगोवाल समझौता के नाम से जानते हैं।

इस समझौते में यह तय हुआ था कि चंडीगढ़ को पंजाब को सौंप दिया जाएगा और हरियाणा अपनी अलग राजधानी बनाएगी। इसके बदले पंजाब के करीब 400 हिंदी भाषी गांव, अबोहर और फाजिल्का इलाकों को हरियाणा को दे दिया जाएगा। इसके बाद गांव की पहचान के लिए एक कमीशन भी बिठाई गई थी। लेकिन उस समय किसी कारणवश गांव की निशानदेही ना हो सकी। इसके बाद यह मामला फिर से लटक गया।

बेवजह उठाया गया यह मुद्दा

भारत के अपर सॉलीसीटर जनरल और विधि आयोग के सदस्य सत्यपाल जैन ने इस संबंध में कहा कि यह विवाद का कोई मुद्दा नहीं है। पिछले 55 सालों से सारी व्यवस्था सही चली आ रही है, कभी कोई समस्या नहीं आई। लेकिन जब से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने चंडीगढ़ के कर्मचारियों को सेंट्रल सर्विस रूल का फायदा देने की बात की है तब से पंजाब सरकार उल्टे-सीधे बयान दे रही है। इसी वजह से ही पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने विधानसभा में सत्र बुलाकर फिर से इस मुद्दे को उठाया है।

नेता इस मुद्दे पर बैठकर बातचीत करें और इसका हल निकालें

सॉलीसीटर जनरल जैन ने तीनों प्रदेशों के नेताओं से अपील की कि वे एक साथ बैठकर किस मुद्दे पर बात करें और इसका हल निकाले। इस तरह से बेवजह मुद्दे को उठाना और गलत बयानबाजी करना किसी भी तरह से सही नहीं है। अगर इस बारे में चंडीगढ़ के लोगों की राय ली जाए तो यहां के लोग ना तो हरियाणा में जाना चाहते हैं और ना ही पंजाब में, वह चंडीगढ़ को केवल केंद्र शासित प्रदेश के तौर पर ही देखना चाहते हैं। इसीलिए इस विवाद को तुरंत खत्म कर देना चाहिए।

Rajni Thakur

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