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हरियाणा के इस शख्स ने किया ऐसा कारनामा जिससे बड़े बड़े लोगों के छूटे पसीने

लगातार लोगों के ताने मिलते रहे, फिर भी बिना किसी की सुने और मन में जज्बा लिए 90 वर्षीय कल्लूराम ने लगातार 50 सालों तक पहाड़ों के बीच तालाब बनाकर मानवता की मिसाल पेश की है. यह तालाब अब हर साल सैकड़ों पशु-पक्षिओं की प्यास बुझाता है।

इतना ही नहीं कल्लूराम की तीन पीढियां इस तालाब के लिए पहाड़ों में रास्ता बनाने व पानी पहुंचाने के लिए लगातार उनके साथ कार्य कर रहे हैं।

कल्लूराम के मन में एक टीस जरूर है कि यहां तक पहुंचने का पक्का रास्ता बनें और पशु-पक्षियों के लिए इस तालाब में पानी पहुंचाने का स्थाई समाधान हो।

साथ ही यह भी डर है कि कहीं यह तालाब खनन की भेंट ना चढ़ जाए। बता दें कि चरखी दादरी के गांव अटेला कलां का निवासी कल्लूराम जिनकी उम्र 90 साल है।

उन्होंने कुछ ऐसा कर दिखाया है जिसको लेकर उनकी हर तरफ मानवता की मिसल की चर्चा हो रही है। कल्लूराम को पहाड़ों में यह तालाब बनाने में 50 साल का वक्त लगा। जिसके बाद वर्ष 2010 में ये तालाब बनकर तैयार हुआ जो अब चरखी दादरी में एक शख्स का जज्बा और जुनून लोगों के लिए मिसाल बना है।

गांव टेला कलां से निकलते ही पहाड़ की चढाई शुरू होती है और करीब डेढ़ किलोमीटर की चढ़ाई के बाद कल्लूराम के बने तालाब पर पहुंचा जा सकता है।

कल्लूराम आज भी सुबह 4 बजे उठकर तालाब तक पानी का मटका लेकर पहुंचते हैं और दिनभर तालाब के आसपास पत्थरों को उठाकर रास्ता बनाने व तालाब की सुंदरता के लिए लगाते रहते हैं।

कल्लूराम कहते हैं कि लोगों के ताने मिले, घरवाले परेशान हो गए थे। फिर भी मन में पशु-पक्षिओं के लिए कुछ करने का जज्बा था। यहीं कारण है कि आज वह बेजुबां के लिए कुछ कर सका है। उसका बेटा व पोता भी अब उसके इस कार्य में हाथ बंटा रहे हैं।

कल्लूराम ने बताया कि वह 18 वर्ष की उम्र में पहाड़ों में बकरियां व गायों को चराने के लिए जाते थे। उस समय वहां पानी के चलते पशु-पक्षियों की लगातार मौतें हो रही थी। इसी दौरान मन में कुछ करने की ठानी और लगातार हथौड़े व छैनी से कार्य करते हुए पहाड़ों के बीच तालाब बनाया। इस तालाब को बनाने में करीब 50 साल लगे हैं ।

कल्लूराम के इस काम की जानकारी मिली तो पिछले दिनों डीसी श्यामलाल पूनिया और सांसद धर्मबीर सिंह ने पहाड़ों पर चढ़ाई चढक़र मौके का निरीक्षण करने के बाद कल्लूराम के साहस को सलाम किया है। साथ ही इस क्षेत्र का दार्शनिक स्थल बनाने की बात भी कही।

कल्लूराम ने बताया कि इस उम्र में भी वे अपने बेटे वेदप्रकाश व पोते राजेश के साथ इस तालाब तक आने के लिए अस्थाई रास्ता बनाने में लगे हैं। यहां पर आज भी कंधे पर मटका लेकर आते हैं और लोगों की प्यास बुझाते हैं।

कल्लूराम के इस साहस को देखते हुए भी कोई सम्मान नहीं मिला है। साथ ही उन्हें इस बात का मलाल है कि ग्रामीणों की मांग के बावजूद प्रशासनिक अधिकारी तालाब तक रास्ता नहीं बनवा सके हैं।

Anila Bansal

I am the captain of this ship. From a serene sunset in Aravali to a loud noisy road in mega markets, I've seen it all. If someone asks me about Haryana I say "it's more than a city". I have a vision for my city "my Haryana" and I want people to cherish what Haryana got. From a sprouting talent to a voice unheard I believe in giving opportunities and that I believe makes a leader of par excellence.

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