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1 रुपये प्रति पैकेट से बेची मटर, अब खुद की फैक्ट्री के है मालिक, जानिए कहानी अंशुल गियाल की

राजस्थान के टोंक जिले में रहने वाले अंशुल गोयल की कहानी बेहद ही दिलचस्प है। यूं तो अंशुल ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है, लेकिन काम स्नैक्स बेचने का कर रहे हैं। कॉलेज में एंटरप्रेन्योरशिप के एक प्रोजेक्ट के दौरान ही उन्होंने सोच लिया था कि बिजनेस ही करना है। अंशुल गोयल ने कभी 1 रुपये के पैकेट में बिकने वाली मटर की नमकीन का बिज़नेस शुरू किया था और आज अपनी मेहनत के दम पर वो लाखों रुपये की कंपनी स्थापित कर चुके हैं।

अंशुल के लिए यह सब करना इतना आसान नहीं था। इसके लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा। अंशुल ने अपना बिज़नेस शुरु करने से पहले काफी रिसर्च भी किया था लेकिन उनके पास पर्याप्त पैसा नहीं था जिससे वो बिज़नेस शुरू कर पाते।

उन्होंने कई लोगों से मदद भी मांगी लेकिन उन्हें मदद नहीं मिली। अंशुल ने मार्केट मे रिसर्च किया उन्होंने कुछ दिनों तक देखा कि बाज़ार में कौन सा प्रोडक्ट कितना बिक रहा है। लोग कौन सी चीज सबसे ज्यादा खरीदारी करते हैं?

कई चीजों को देखने के बाद अंशुल ने मटर का बिज़नेस शुरू करने का फैसला किया। वहीं अंशुल गोयल ने बताया कि साल 2017 में मैने जयपुर से करीब डेढ़ लाख रुपये से व्यवसाय की शुरुआत की।

पैकेट की प्रिन्टींग में मुझे करीब 60 से 70 हजार तक का ख़र्च आया और करीब 50, 000 रुपये पैकिंग के लिए सेकेंड हैन्ड मशीन खरीदने में लगा। इसके अलावे मार्केट से लगभग दो क्विंटल सुखी मटर खरीदी।

अंशुल गोयल आगे बताते है कि शुरुआती दिनों में अनुभव के अभाव में व्यवसाय से जुड़ी बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा लेकिन एक से डेढ़ महीने काम करने के बाद अच्छा अनुभव हो गया।

इसके बाद अंशुल गोयल ने कइ दुकानों से अपने प्रोडक्ट की प्रतिक्रिया ली। जिसके बाद उन्हें पता चला कि तेल सुखाने की मशीन भी आती है जिससे खस्ता मटर तैयार होती है। इसके बाद अंशुल ने उसे खरीदा और उनका प्रोडक्ट बिकने लगा। महीनों बाद उनके पास कई आर्डर आने लगे। उनके मटर के पैकेट का कारोबार चल निकला।

Anila Bansal

I am the captain of this ship. From a serene sunset in Aravali to a loud noisy road in mega markets, I've seen it all. If someone asks me about Haryana I say "it's more than a city". I have a vision for my city "my Haryana" and I want people to cherish what Haryana got. From a sprouting talent to a voice unheard I believe in giving opportunities and that I believe makes a leader of par excellence.

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