आज हम एक ऐसे साहसी के बारे में बताने जा रहे है जिन्होंने दुनिया की सबसे ऊंची चोटियों पर तिरंगा लहराया था। अब वो हमारे बीच नहीं है। हम जिसकी बात कर रहे है उनका नाम अदम्य साहस के प्रतीक कर्नल नरेंद्र ‘बुल’ कुमार है। जिनका निधन 1 जनवरी 2021 को हुआ। उनकी रिपोर्ट पर ही सेना ने 13 अप्रैल, 1984 को ‘ऑपरेशन मेघदूत’ चलाकर सियाचिन पर कब्जा बरकरार रखा था।
यह दुनिया की सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र में पहली कार्रवाई थी। वे सियाचिन में पाकिस्तानी की नापाक हरकतों को रोकने वाले भारतीय सेना के ‘शेर’ के साथ-साथ एक प्रसिद्ध पर्वतारोही थे। कर्नल नरेंद्र कुमार का जन्म 1933 में रावलपिंडी में हुआ था। 1953 में भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून से कुमाऊं रेजिमेंट में वे शामिल हुए थे।
सेना के अफसरों के मुताबिक यदि हाई एल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल के कमांडेंट के रूप में सियाचिन ग्लेशियर और साल्टोरो रेंज में वह अभियान नहीं चलाते तो शायद इस वक्त सियाचिन पर पाकिस्तान का कब्जा होता।
कर्नल नरेंद्र को देश के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मानों में से एक पद्म श्री के साथ-साथ अर्जुन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। नरेंद्र कुमार ने 87 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली। कर्नल कुमार की गिनती देश के सर्वश्रेष्ठ पर्वताहोरियों में होती थी।
उन्होंने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंग फहराने का गौरव भी हासिल किया था। नरेंद्र 17 वर्ष की उम्र में ही भारतीय आर्मी में दाखिल हो गए। आर्मी प्रशिक्षण के बाद इन्हें 1954 में कुमारों रेजिमेंट में कमीशन मिला । भारतीय सेना में ‘बुल कुमार’ के नाम मशूहर कर्नल नरेंद्र कुमार के इस नाम के पीछे भी एक रोचक वाकया जुड़ा है।
अंग्रेज़ी के ‘बुल’ शब्द का उपनाम कर्नल नरेंद्र कुमार के नाम के साथ तब जुड़ा जब नॅशनल डिफेंस अकाडेमी में वे अपने पहले बॉक्सिंग मैच खुद से 6 इंच लम्बे और कहीं ज़्यादा तगड़े प्रतिद्वंद्वी से एक बैल की तरह भीड़ गए थे।
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