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जानिए कहानी उस जाबाज़ की जो समुद्र में 438 दिनों तक लड़ता रहा मौत से जंग, जाने क्या हुआ अंजाम

ये बात 16 आना सच है, क्योंकि जब आप किसी उम्मीद को छोड़ देते हैं तो यकीन मानिए आपका मकसद ही खत्म हो जाता है। क्योंकि ज़िन्दगी जीने के लिए कुछ मिले या ना मिले लेकिन उम्मीद ज़रूर मिलनी चाहिए। क्योंकि उम्मीद है तो सब-कुछ है, बिना उम्मीद के कुछ भी नहीं है। डॉक्टर्स भी इस बात को कहते हैं कि कोई भी मरीज़ जब तक ही ज़िन्दा रह सकता है जब तक उसके अंदर खुद को बचाने की उम्मीद हो, क्योंकि बिना, खाने, बिना पीने, बिना हवा के हम ज़रूर ज़िन्दा रह सकते हैं, चाहे कुछ ही समय के लिए ही क्यों ना सही लेकिन बिना उम्मीद के तो हम पल भर भी ज़िन्दा नहीं रह सकते हैं।

अब इसी उम्मीद से ज़ुड़ी ख़बर हम आपके सामने साझा करने जा रहे हैं, जहां एक मछुआरा सिर्फ और सिर्फ अपनी उम्मीद के चलते ही ज़िन्दा रहा है। चलिए अब आपको उसी इंसान से रूबरू कराते हैं। बतादें मछुआरे जोस सल्वाडोर अल्वारेंगा की।

वहीं अल्वारेंगा, जो मछली पकड़ने के लिए समुद्र में उतरा तो, लेकिन उसे वापसी में पूरे 438 दिन लग गए। जी हां, ये बात बिल्कुल सच है, लेकिन इसके पीछे की पूरी कहानी क्या है हम आपको बताते हैं। 17 नवंबर 2012। यह वह तारीख है, अल्वारेंगा मैक्सिको के एक गांव से निकला और गहरे समुद्र में मछली पकड़ने उतर गया।

इस यात्रा में उसके साथ उसका एक साथी भी था। मछलियों पकड़ने में उसे अल्वारेंगा जितनी महारत हासिल नहीं थी। मगर वो खुद को निखार रहा था। अल्वारेंगा की योजना के हिसाब से उसकी यह यात्रा करीब एक दिन तक चलने वाली थी। इस दौरान ब्लैक टिप शार्क और सेलफिश को पकड़ने का उसका प्लान था।

सब कुछ योजना के अनुसार ही शुरू हुआ था। मगर तभी एक खतरनाक तूफान ने अपनी दस्तक दे दी। भारी बारिश और तेज हवाओं के कारण उसे खतरे की चेतावनी मिल चुकी थी। बावजूद इसके वो अपनी सिंगल इंजन वाली टॉपलेस बोट के सहारे आगे बढ़ता रहा।

यह रिस्क उसे भारी पड़ा. 5 दिवसीय तूफान उसे अपने साथ बहा ले गया। जिस रेडियो से वो मदद मांग सकता था। वो भी नष्ट हो चुका था। बोट का वजन कम करने के लिए अल्वारेंगा ने 500 किलोग्राम वजन के बराबर की अपनी सारी मछलियां फेंक दी।

अब आप इस खबर से समझ ही गए होंगे कि हम आपके सामने किस तस्वीर को लाने की कोशिश कर रहे थे। दरअसल ये ख़बर सच्ची है और परेशानियों में फंसे अन्य लोगों के लिए एक मिसाल भी।

Anila Bansal

I am the captain of this ship. From a serene sunset in Aravali to a loud noisy road in mega markets, I've seen it all. If someone asks me about Haryana I say "it's more than a city". I have a vision for my city "my Haryana" and I want people to cherish what Haryana got. From a sprouting talent to a voice unheard I believe in giving opportunities and that I believe makes a leader of par excellence.

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