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हरियाणा सेवा के अधिकार आयोग की लापरवाही आई सामने, लोगो को समय पर नहीं मिले मृत्यु प्रमाण-पत्र

चंडीगढ़ -हरियाणा सेवा का अधिकार आयोग ने निर्धारित समय में मृत्यु प्रमाण-पत्र जारी न करने से जुड़े एक मामले में गलतबयानी के लिए पंडित भगवत दयाल शर्मा स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, रोहतक के पूर्व निदेशक डॉ. रोहतास यादव से जवाबतलबी की है। साथ ही, इस मामले में संस्थान के ही पांच डॉक्टरों के खिलाफ स्वत: संज्ञान नोटिस भी जारी करने का निर्णय लिया है।

आयोग की सचिव मीनाक्षी राज ने कहा कि इस केस में जिन-जिन अधिकारियों व कर्मचारियों की लापरवाही पायी जाएगी उन सभी को आयोग द्वारा नोटिस दिया जाएगा क्योंकि यह जीवित व्यक्तियों में मानवीय संवेदनाओं के मृत होने का जीवंत उदाहरण है।

उन्होंने बताया कि आयोग ने इन फाइलों को लम्बित रखने के लिए मुख्य तौर पर जिम्मेदार जिन डॉक्टरों के खिलाफ स्वत: संज्ञान नोटिस जारी किया है, उनमें डॉक्टर अजय, अंजलि, पेमा, साक्षी और अमरनाथ शामिल हैं। आयोग ने इन डॉक्टरों की मेल आईडी और मोबाइल नम्बर भी मांगे हैं ताकि उन्हें व्यक्तिगत रूप से नोटिस जारी किया जा सके कि हरियाणा सेवा का अधिकार अधिनियम, 2014 के अनुसार समय पर सेवा न देने के लिए क्यों न उन पर 20-20 हजार रुपये तक का जुर्माना लगाया जाए।

इसके अलावा, मृत्यु के 125 लम्बित मामलों के बारे में यह जानकारी भी मांगी है कि वे उपायुक्त कार्यालय या सिविल सर्जन कार्यालय को किस तारीख को भेजे गए थे। साथ ही, उपायुक्त और सिविल सर्जन को भी इस बात की पुष्टि करने को कहा गया है कि क्या ये मामले उनके कार्यालयों में प्राप्त हुए और उन पर क्या कार्यवाही की गई।

मीनाक्षी राज ने इस बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि गत 24 अक्तूबर को संस्थान के निदेशक से प्राप्त एक जवाब में यह स्वीकार किया गया है कि 125 मामलों में से 86 मामलों में अभी तक मृत्यु प्रमाण पत्र जारी नहीं किए गए हैं। यह पीजीआई के पूर्व निदेशक डॉ. रोहतास यादव द्वारा 11 अक्तूबर को सुनवाई के दौरान आयोग के समक्ष दिए गए बयान के एकदम विपरीत है, जिसमें उन्होंने कहा था कि संस्थान में मृत्यु का ऐसा कोई मामला लम्बित नहीं है, जिसके सम्बन्ध में मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किया जाना हो।

उन्होंने बताया कि तथ्यों को सत्यापित करने के लिए, पीजीआईएमएस, रोहतक की वर्तमान निदेशक डॉ. गीता के साथ टेलीफोन पर बात की गई। उन्होंने 24 अक्तूबर को भेजी रिपोर्ट में उल्लेख किया कि मृत्यु से सम्बन्धित जिन 125 फाइलों के पंजीकरण में देरी हुई, उनमें से 107 फाइलें महामारी अवधि की हैं, जब इस महामारी के कारण असामान्य परिस्थितियाँँ थीं।

परिणामस्वरूप, प्रणाली चरमरा गई थी। इसके अलावा, गैर-महामारी अवधि के 18 मामलों में से ज्यादातर 2019 के हैं, जिनमें देरी हर स्तर पर व्यवस्थित जांच की विफलता के कारण है। हालांकि, यह तर्क दिया गया है कि अब दुरूस्त है।

मीनाक्षी राज ने बताया कि दिनांक 24 अक्तूबर के इस पत्र के साथ संलग्न 5 डॉक्टरों द्वारा हस्ताक्षरित जांच रिपोर्ट धोखा देने के अलावा और कुछ नहीं है। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि 2019 में हुई मृत्यु के मामलों में दो साल के बाद भी मृत्यु प्रमाण पत्र जारी नहीं किया गया जबकि अब महामारी न के बराबर है।

केवल सिस्टम की विफलता पर दोष मढऩे से संबंधित व्यक्ति सेवा देने में देरी के लिए अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकता। हालांकि, यह माना जा सकता है कि महामारी के कारण व्यवस्था चरमरा गई थी और इस दौरान मृत्यु प्रमाण पत्र समय पर जारी नहीं किए जा सके, लेकिन 2019 के 17 मामलों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता है।

उन्होंने बताया कि इन 17 मामलों में से 6 मामलों में भी आयोग के हस्तक्षेप के बाद गत 10 सितम्बर को 2 साल से भी अधिक समय के बाद मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किया गया है लेकिन दुर्भाग्य से शेष 11 मामलों में मृत्यु प्रमाण पत्र आज तक जारी नहीं किया गया है।

जुलाई, 2019 में हुई मृत्यु के 3 मामलों में आज तक भी मृत्यु प्रमाण पत्र आज भी जारी नहीं किया गया है। इनके बारे में केवल यह उल्लेख किया गया है कि मामला उपायुक्त कार्यालय या सिविल सर्जन कार्यालय को भेजा गया है लेकिन निदेशक इन कार्यालयों में से किसी को भी मामला भेजे जाने की तारीखें बताने में विफल रहे हैं।

Anila Bansal

I am the captain of this ship. From a serene sunset in Aravali to a loud noisy road in mega markets, I've seen it all. If someone asks me about Haryana I say "it's more than a city". I have a vision for my city "my Haryana" and I want people to cherish what Haryana got. From a sprouting talent to a voice unheard I believe in giving opportunities and that I believe makes a leader of par excellence.

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