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हरियाणा में 27 सालों से जान और नौकरी को दांव पर लगाकर इस कमरे में चल रही यह पुलिस चौकी

प्रत्येक राज्य में कानून व्यवस्था नियंत्रित करने के लिए एक पुलिस संगठन होता है और इसका प्राथमिक मिशन कानून और व्यवस्था का रख रखाव है। बोर्ड ट्रेनों और आईआर संपत्ति पर यात्री सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इसी जीआरपी पुलिस का महेंद्रगढ़ कार्यालय सुविधा के अभाव में है। लंबा समय 27 वर्ष बीत चुके हैं। अभी तक महज एक कमरा जिसका साइज 10 बाय 10 फीट का है, उसी में 13 पुलिस कर्मी कार्यरत है। इसमें छह महिला ड्यूटी के बाद अलग से आराम करने, ड्रेस बदलने व पकड़े गए अपराधियों को पेशी तक रखने के लिए पुराने गोदाम का सहारा लेना पड़ रहा है। अपराधियों को अलग से लॉकअप में रखने के लिए कोई सुविधा नहीं है। हैरानी यह भी है कि इस पुलिस चौकी में शौचालय व स्नानघर की कोई अच्छी सुविधा नहीं है।

बता दें कि रेलवे स्टेशन के साथ उत्तर दिशा में खाली जगह पर वर्ष 1942 में एक सीमेंट का गोदाम हुआ करता था। वहां पर सीमेंट की निगरानी के लिए एक 10 बाय 10 का कमरा बनाया गया। वर्ष 1995 से पहले यह स्टेशन लोहारू जीआरपी के अधीन था।

बाद में 27 जुलाई 1995 को यात्रियों की सुरक्षा को लेकर इस कमरे में जीआरपी पुलिस चौकी खोली गई। तब से लेकर आज तक इस कमरे में यह जीआरपी पुलिस चौकी चल रही है। कागजों में तो महेंद्रगढ़ का यह रेलवे स्टेशन आदर्श रेलवे स्टेशन का दर्जा लिए हुए है।

फिर भी रेलवे विभाग ने इन कर्मचारियों के लिए कोई रिहायशी क्वार्टर की व्यवस्था नहीं कर रखी है। रात्रि के समय ड्यूटी के दौरान देश व प्रदेश में आदर्श रेलवे स्टेशनों पर जीआरपी व आरपीएफ के लिए अलग-अलग बूथ बने हुए हैं, लेकिन यहां आदर्श रेलवे स्टेशन होते हुए भी इस सुविधा से वंचित रखा जा रहा है।

यह है फिलहाल स्थिति महेंद्रगढ़ रेलवे स्टेशन पर स्थित जीआरपी पुलिस चौकी में वर्तमान में 13 पुलिस कर्मी हैं। इसमें दो इंस्पेक्टर, एक एसआई, चार सिपाही तथा छह महिला कांस्टेबल शामिल हैं। इस चौकी में 10 बाय 10 के कमरे में सभी पुलिस कर्मचारी इकट्ठे नहीं हो सकते हैं। चौकी के बाहर खड़े पेड़ों के नीचे बैठकर ही मीटिंग व अन्य कार्य निपटाते हैं।

बरसात के मौसम में इन कर्मचारियों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जीआरपी चौकी के पास सीमेंट गोदाम का एक ही कमरा है। इस गोदाम में तीन दिशाओं में एक-एक खिड़कियां तो हैं, लेकिन उन्हें बंद करने के लिए आज तक दरवाजे नहीं लगे हैं। आंधी, तूफान, बरसाती पानी कमरे के अंदर तक दस्तक देता है। महिला कर्मचारियों को ड्यूटी के दौरान अपनी ड्रेस चेंज करने के लिए खिड़कियों पर चादर लगानी पड़ रही है।

ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह पुलिस कर्मी अपनी ड्यूटी कैसे करते होंगे? अपराधियों को रखना, मतलब जान व नौकरी दोनों दांव पर पुलिस कभी अपराधी को पकड़ती है तो उसको अपने कमरे में ही रखना पड़ता है।

रात को सोने पर अपराधी भागने के साथ भी कोई बड़ी वारदात को अंजाम दे सकता है। इस वजह से पुलिस कर्मचारियों को जान व नौकरी दोनों चीज दांव पर लगानी पड़ती हैं। चौकी परिसर में लाइट की कोई अच्छी व्यवस्था नहीं है। चौकी में जहरीले जीव-जंतु निकलते रहते हैं। इससे कर्मचारियों को काटने का भी डर सतता रहता है।

Rajni Thakur

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