ये हैं हरियाणा की तीन ‘हैवी ड्राइवर्स’ जो अब दिल्ली की सड़कों पर दौड़ाएंगी बसें, चुनौतियों से भरपूर थी राह

जब भी हैवी व्हीकल जैसे ट्रक, बस या कोई अन्य भारी वाहन चलाने की बात आती है तो सबसे पहले पुरुषों का ही ख्याल ध्यान में आता है। महिलाओं को भरी वाहन चलें से दूर ही रखा जाता है। क्योंकि लोग महिलाओं को इतना काबिल नहीं समझते कि वह भी भारी वाहन चला पाएंगी। लेकिन केवल इसी दक्षता के आधार पर महिलाओं को पुरुषों से आंका नहीं जा सकता। और हरियाणा की इन तीन महिलाओं ने इसे साबित भी किया है। अपनी मेहनत के दम पर हैवी व्हीकल ड्राइव करके सबको गलत साबित कर दिया। अब ये बेटियां दिल्ली की सड़कों पर डीटीसी बसें दौड़ाएंगी।

ये तीनों ही बेटियां हरियाणा के चरखी दादरी जिले की रहने वाली हैं। शर्मिला (गांव अख्तियारपुर), मिसरी निवासी भारती और मौड़ी निवासी बबिता धवन का बतौर चालक डीटीसी बसों में नियुक्त हुई है। इन तीनों ने ड्यूटी ज्वाइन कर ट्रेनिंग शुरू कर दी है और जल्दी ही राजधानी दिल्ली की सड़कों पर डीटीसी बसें दौड़ाती नजर आएंगी।

जब इन तीनों से इनके सफर के बारे में पूछा गया तो पूछा गया कि उनका यहां तक का सफर कैसा रहा? तो इनका कहना था कि शुरुआत इतनी अच्छी नहीं रही. लोगों को पहले उनकी काबिलियत पर विश्वास नहीं था और यही कहा जाता था कि यह लड़कियों के बस का नहीं. धीरे-धीरे अपनी मेहनत और जिद के दम पर सभी के विचारों को गलत साबित कर दिया. आज पूरा गांव इनकी काबिलियत पर गौरवान्वित महसूस कर रहा है.

मौड़ी निवासी बबीता ने 2016 के बैच में, भारती ने 2018 के बैच में और शर्मिला ने 2019 के बैच में अपना प्रशिक्षण पूरा किया. शुरुआती दौर में परिवार की आर्थिक मदद के लिए उन्होंने ड्राइवरी सीखने का फैसला लिया था. महेंन्द्रगढ़ निवासी शर्मिला की शादी अख्त्यारपुरा गांव में हुई थी.

शर्मिला ने बताया कि एक बार बेटा बीमार हो गया और उसके पति को बाइक चलानी नहीं आती थी. बेटे को लगातार अस्पताल ले जाना था और एक-दो दिन साथ जाने के बाद परिचितों ने भी मना कर दिया. इसके बाद उसने बाइक सीखी ताकि बच्चे को अस्पताल ले जा सके. बस, यहीं से ड्राइवरी करने का रास्ता मिला।

वहीं, मौड़ी निवासी बबीता ने बताया कि खेती में पिता का हाथ बंटाने के लिए उसने ट्रैक्टर सीखा था. इसके बाद उसने हैवी लाइसेंस के लिए प्रशिक्षण लेकर बस चलाना सीखा. मिसरी निवासी भारती ने बताया कि वो पांच बहनें हैं, उनके भाई नहीं है. परिवार को बेटे की कमी न खले इसलिए उसने चालक बनकर परिवार को चूल्हा जलाने में सहयोग करने की सोची. आज वह घर का बेटा बनकर उनका हाथ बंटा रही है.

Rajni Thakur

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