ये कितने कमाल की बात लगती है न, किसी पूरे के पूरे एक गांव में लोगों ने कला को रोजगार बना लिया हो। लोग गांव भी सजा रहे हैं और पैसे भी कमा रहे हैं। ये किसी परीकथा सरीखी बात मालूम होती है, लेकिन ये सच में हो रहा है। हरियाणा के नूह तहसील के एक गांव के लोग वॉल पेंटिंग से रोजगार का स्रोत तलाश रहे हैं। खेरला गांव की दीवारें अब जीवंत रंगों का अनुभव करती हैं और इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों की कहानियों को बताती हैं। सुस्त और निराश गांव वालों में इससे नई आशा का संचार हो रहा है। कुछ दीवारों को चमकीले रंगों में सितारों से सजाया गया है, एक दीवार पर एक लड़की झूले में ऊंची उड़ान भरती दिख रही है,जिसका अर्थ है,”लड़कियों को अपने सपनों के लिए उड़ान भरने को प्रोत्साहित करना। ऐसे ही एक दीवार पर पक्षियों को पिंजरों से आजाद करते हुए दिखाया गया है, ये एक स्केच लोगों को सीमाओं को तोड़ने के लिए प्रेरित करना चाहता है।
यह परियोजना गुड़गांव स्थित एनजीओ डोनेट एन ऑवर में काम कर रहे कार्यकर्ताओं की दिमागी उपज है। ये एनजीओ शिक्षा पर केंद्रित प्रोजेक्ट्स पर काम करता है। डोनेट एन ऑवर की संस्थापक मीनाक्षी सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में बताया, हमें शिक्षा के स्तर में सुधार के लिए अधिकारियों द्वारा गांवों को बुलाया गया था। जब हम वहां गए, हमने महसूस किया कि गांव के लोग गरीब थे, शिक्षा की कमी के कारण, लेकिन अवसरों की कमी के कारण। इसलिए, एनजीओ ने गांव की पूरी जनसंख्या को प्रेरित कर वॉल पेंटिंग का उपयोग करके पर्यटन स्थल के रूप में गांव को बढ़ावा देने का फैसला किया। हम पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए स्थानीय कला और शिल्प को बढ़ावा देना चाहते हैं। हम इसे लोगों के लिए वन डे डेस्टिनेशन बनाना चाहते हैं। टूरिस्ट यहां पर आकर स्थानीय भोजन, संगमरमर और अन्य स्थानीय खेलों का मजा ले सकते हैं। साथ ही कुछ ऐतिहासिक स्मारकों पर भी जा सकते हैं।
दीवारों पर ये चित्र गांव के निवासियों द्वारा ही बनाए गए हैं। गांव के प्रत्येक परिवार ने अपना रंग खरीद लिया है। इस मुहिम में एनजीओ के वॉलयंटियरों क साथ ही साथ कुछ युवाओं ने भी दीवारों को रंगाने में असमर्थ लोगों की मदद की। हालांकिगांव के निवासी शुरू में इस परियोजना के बारे में अनिच्छुक थे। गांव में रहने वाले एक ट्रांसपोर्टर फकरू के मुताबिक, बहुत से लोग पहले से जुड़ने में संकोच करते थे। ये ऐसे लोग हैं, जिनके पास बहुत अधिक पैसा नहीं है और केवल सजावट के लिए नकद में डाल करने का विचार उन लोगों ने आसानी से नहीं लिया। हालांकि, एक बार उन्हें लंबे समय तक लाभ का एहसास हुआ, तो वे भी शामिल होने लगे। गांव के रहने वाले 17 वर्षीय वेद प्रकाश के मुताबिक, हम सड़क के किनारों की दुकान लगा लेते हैं और टूरिस्टों को घर की बनाई हुई वस्तुओं और भोजन बेचने के लिए तत्पर रहते हैं
इस मुहिम में शामिल एक वॉलंटियर अमित सिंह ने एचटी को बताया, ग्रामीणों को पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए आवश्यक स्वच्छता के बारे में भी बताया गया। इसी के साथ उन्होंने अपने लेन को साफ करना शुरू कर दिया है। अगर सब कुछ प्लानिंग के अनुरूप हुआ तो पर्यटकों को विलेज टूर, गोबर के साथ खिलौने बनाने, सजाए गए साइकिल वाले वाहन और पारंपरिक कपड़ों के साथ सवारी और ट्रेकिंग जैसी गतिविधियों का आनंद ले सकेंगे। ग्रामीणों को बाजरा रोटी, सफेद मक्खन, चटनी और लस्सी जैसे समृद्ध व्यंजनों की पेशकश करके परंपरा को जीवित रखने और रोजगार हासिल करने का मौका मिलेगा। एनजीओ ग्रामीणों को एडवेंचर ट्रेनर गाइड के रूप में प्रशिक्षित भी कर रही है।
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