सिर पर देहाती मंडासा, सफेद धोती-कुर्ता पहने हाथ में लाठी लिए अच्छे खासे डील-डौल और झुर्रियों भरे चेहरे पर घनी सफेद मूंछों वाले गांव मांगर के रहने वाले बाबा फतेह सिंह 103 साल की उम्र में भी खूब चलते-फिरते हैं। पेड़-पौधों के संरक्षण में उनकी गहरी रुचि है। मांगर बनी में आते हैं तो उनकी आंखों में चमक, चाल और आवाज में जोश आ जाता है।
करीब 600 एकड़ में फैली मांगर बनी के एक-एक कोने से परिचित बाबा फतेह सिंह को गांव के लोग बाबा फतरा के नाम से भी जानते हैं। उन्हें मांगर बनी में मौजूद पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों की हरेक प्रजाति का गहरा ज्ञान है, इसलिए उन्हें मांगर बनी का एनसाइक्लोपीडिया भी कहा जाता है।
अरावली की गोद में बसे गांव मांगर के पास करीब छह सौ एकड़ में फैला घना जंगल है। इसे ही मांगर बनी कहा जाता है। पर्यावरणविद इस जंगल को दिल्ली-एनसीआर के लाखों लोगों की आक्सीजन फैक्ट्री कहते हैं। दिल्ली-एनसीआर के क्षेत्र में यह एकमात्र घना वन है। यह वन क्षेत्र अगर आज बचा हुआ है तो इसका श्रेय गांव की उस पीढ़ी को जाता है, जिसमें बाबा फतरा अकेले बचे हैं।
गांव में एक पौराणिक कहानी है कि मांगर बनी में कभी गूदड़िया दास बाबा नाम के संत ने तपस्या की थी। लोगों की मान्यता है कि अगर बनी से लकड़ी या पत्ते तोड़े जाएं तो बाबा गूदड़िया को दर्द होता है। यह मान्यता पीढ़ी दर पीढ़ी चली आई है और बाबा फतरा जैसे लोगों ने इसे और मजबूत किया।
अपने समय में वे गांव के मौजिज पंच रहे हैं। एक समय ऐसा आया, जब जमीन के दाम आसमान छूने लगे। आस-पास के गांवों में पेड़ काटने व खनन की गतिविधियां होने लगीं। तब बाबा फतरा ने ही गांव का पंच होने के नाते ग्रामीणों को जमीन बेचने, पेड़ काटने व खनन करने से रोका।
100 से अधिक बच्चे जुड़े क्लब से
गांव में रखी ईको क्लब की स्थापना गांव के युवा पर्यावरण कार्यकर्ता सुनील हरसाना मांगर ईको क्लब चलाते हैं। यह क्लब नई पीढ़ी के बच्चों में मांगर बनी के संरक्षण के बीज रोप रहा है। क्लब बच्चों को मांगर बनी का दौरा कराता है। उन्हें इसका महत्व बताने के साथ संरक्षण के तरीके सिखाता है। सौ से अधिक बच्चे इस क्लब से जुड़े हैं।
सुनील हरसाना का कहना है कि बाबा फतरा की प्रेरणा से ही इस क्लब की नींव रखी गई। इस उम्र में भी बाबा बच्चों के साथ गतिविधियों में हिस्सा लेकर उनका हौसला बढ़ाते हैं और जानकारियां देते हैं। यह क्लब पूरे साल बनी के विभिन्न पेड़ों के बीच एकत्र करता है। मानसून के दौरान इन बीजों को जगह-जगह बिखेरा जाता है, जिससे हर साल हजारों पौधे उगते हैं। बाबा चाहते हैं कि बनी के संरक्षण की प्रेरणा व तरीके पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ने चाहिएं।
2010 के मांगर डेवलपमेंट प्लान में इसे कंस्ट्रक्शन जोन दिखाया गया था। ग्रामीणों ने इस पर एतराज किया तो उन्हें मालूम चला कि मांगर बनी सरकार के रिकार्ड में अभी तक वन क्षेत्र नोटिफाइड नहीं है। इसके बाद ग्रामीणों ने सरकार व अदालतों में अपील की। तब बाबा फतरा ने अहम भूमिका निभाई। उन्हें मांगर बनी के कोने-कोने की जानकारी थी। उनसे यह सारी जानकारी लेकर पर्यावरण संरक्षण कार्यकर्ताओं ने सरकार तक पहुंचाई। इसके बाद सरकार सर्वे के लिए तैयार हुई
बाबा फतरा ने राजस्व विभाग की टीम को साल 2010 में 87 साल की उम्र में करीब 600 एकड़ में फैली मांगर बनी का पैदल चलकर सर्वे कराया। उन्होंने बनी में मौजूद पेड़, वनस्पति, पशु-पक्षियों की प्रजातियों व संख्या की रिपोर्ट तैयार कराई। इस सर्वे रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने पहली बार मांगर वनी को वन क्षेत्र माना। इसे नो कंस्ट्रक्शन जोन घोषित किया गया। मांगर डेवलपमेंट प्लान पर रोक लगी, जो अब तक जारी है।
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