दिवाली पर हरियाणा के झज्जर मे बने दीयों से जगमग होगी माया नगरी मुंबई, 70 लाख दीप का ऑर्डर हुआ पूरा

मिट्टी कला में सुराही व दीयों के चलते राष्ट्र स्तर पर अपनी पहचान चुके झज्जर जिले के कारीगर मौसम की मार के बावजूद दीवाली पर्व के चलते दीयों के ऑर्डर पूरे करने में लगे हैं। शहर के छावनी मोहल क्षेत्र स्थित कृष्ण मिट्टी कला उद्योग के संचालक विनोद ने बताया कि फिल्मी सितारों की नगरी मुंबई में जहां वे दस लाख दीयों का आर्डर भेज चुके हैं वहीं शेष आर्डर की पूर्ति में जुटे हुए हैं। अबकी बार दीपावली पर्व को लेकर महाराष्ट्र के मुंबई, जलगांव व पुणे, मध्यप्रदेश के नीमच, गुजरात के वापी, दमन, राजस्थान के चित्तौड़गढ़ से जून-जुलाई माह में ही दीयों व अन्य सामान के आर्डर आने शुरू हो गए थे। जिसके बाद से तैयारी में जुटे उनके कारीगरों द्वारा करीब 70 लाख दीयों के आर्डर भेजे जा चुके हैं। शेष आर्डर को पूरा करने में कारीगरों द्वारा दिन-रात एक किए जा रहे हैं। थोक के खरीददारों द्वारा झज्जर के दीयों को पसंद किया जा रहा है। मिट्टी के छोटे दीयों के अलावा बड़ा दीया, कैंडील, गुल्लक, पोट, धूपदानी, करवा व अहोई अष्टमी व्रत के दौरान उपयोग में लाई जाने वाली कमोई व नवरात्र कुंडी आदि की भी मांग है।

मौसम की मार के चलते 7 गाड़ियों का आर्डर करना पड़ा कैंसिल



कृष्ण मिट्टी कला उद्योग के संचालक विनोद की माने तो उनके पास दीवाली को लेकर भरपूर तादाद में आर्डर मिले थे। पिछले दिनों आई लगातार बरसात के कारण गीली हुई मिट्टी के कारण आर्डर पूरे नहीं हो पा रहे। इसी के चलते उन्हें सात गाड़ियों के दीयों के आर्डर कैंसिल पडे़ है। एक गाड़ी में करीब छह से सात लाख दीये आते हैं। अब तीन गाड़ियों के आर्डर एडवांस में हैं जिन्हें पूरा करने के लिए आस-पास के कारीगरों से भी दीये जुटाने में लगे हैं। झज्जर के गांव छुड़ानी, मांडौठी, छोछी, मदाना, दुल्हेड़ा, दुजाना के अलावा रोहतक से भी वे अपने साथी कारीगरों की सहायता ले रहे हैं।

लोकल डिमांड में भी हुई बढ़त



मिट्टी के दीये बनाने वाले कारीगर महाबीर व ईश्वर ने बताया कि पिछले दिनों आई बरसात के कारण गीली हुई मिट्टी के चलते दीया निर्माण में परेशानी आ रही है। उनके द्वारा धनतेरस के दिन उपयोग में लाया जाने वाला बड़ा दीया बनाया जा रहा है। ईश्वर ने जहां करीब चार हजार दीये बना का चुका है वहीं महाबीर ने पांच हजार से अधिक दीये बना लिए हैं। इसके अलावा वे धूपदानी, गुल्लक, बरवे व कुंडी बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि अब लोकल डिमांड भी बढ़ रही है। पिछले वर्षों में जहां तीन से पांच लाख छोटे-बड़े दीयों की खपत थी वहीं अब यह बढ़ कर आठ लाख दीयों तक पहुंच गई है। ऐसे में दीवाली पर उनके पास काम तो बहुत है लेकिन बरसात के कारण यह सप्ताह केवल मिट्टी सुखाकर तैयार करने में ही निकल जाएगा।

बरसात के कारण हुआ नुकसान



अहोई अष्टमी के लिए स्पेशल कमोई बनाने वाले कारीगर छावनी नरेश बेडवाल ने बताया कि उसने बड़ी मेहनत मशक्कत के बाद 400 कमोइयों का आवा तैयार किया। उसी दौरान लगातार तीन दिनों तक चली बरसात के कारण उसकी पूरी मेहनत खराब हो गई। आवा भट्ठी में लगी अधिकांश कमोई जहां कच्ची रह गई थी वहीं कई अधपकी होने के चलते खराब हो गई। इससे जहां उनकी सप्ताह भर की मेहनत पर पानी फिर गया वहीं उसे करीब बीस हजार रुपये की हानि का सामना करना पड़ा। नरेश ने जिला प्रशासन से मिट्टी के कारीगरों के सुध लेने की गुहार लगाते हुए उसके जैसे पीडि़त मेहनतकशों को आर्थिक सहायता दिए जाने की बात कही है। नरेश ने बताया कि अब मिट्टी व ईंधन गीला होने के चलते वह समय पर आर्डर तैयार नहीं कर पाएगा। इस सीजन के अलावा उनके पास कमाई का ओर कोई जरिया भी नहीं है।

रंग-बिरंगे दीये भी बढ़ा रहे रौनक


मिट्टी के दीयों में रंग भर उन्हें आकर्षक बनाया जा रहा है। इस कलाकारी के कारण जहां दीयों का सौंदर्य बढ़ रहा है वहीं इनकी कीमत में वृद्धि हो रही है। कारीगरों द्वारा ग्राहकों की डिमांड पर रंग-बिरंगे दीये भी बनाए जा रहे है जिनका आर्डर उम्मीद के मुताबिक मिल रहा है।ग्राहकों की डिमांड पर तैयार किए गए श्रीलक्ष्मी-गणेश, दीये व अन्य सामान।

Avinash Kumar Singh

A writer by passion | Journalist by profession Loves to explore new things and travel. I Book Lover, Passionate about my work, in love with my family, and dedicated to spreading light.

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