चंडीगढ़ःहरियाणा की सांस्कृतिक विरासत बहुत विशाल है, महाभारत काल के युद्धों से लेकर मुगल काल में लड़े गए कई युद्धों का गवाह हरियाणा की धरती रही है. लेकिन उसकी असली पहचान क्या युद्ध है? जवाब है नहीं, हरियाणा की असली पहचान है, यहां के लोग और उनका रहन-सहन. जिसमें आप देखते हैं इस इलाके की संस्कृति, क्योंकि हरियाणा वाले कभी अपनी संस्कृति को पीछे नहीं छोड़ते और ना ही उससे दूर भागते हैं. यही कारण है कि हरियाणवी संस्कृति आज भी प्रदेश के गांव, खेत-खलिहानों में जिंदा है.
हरियाणवी संस्कृति बहुत पुरानी है, हरियाणा के बारे में कहा जाता है कि यह वो जगह है जहां महर्षी वेद व्यास ने महाभारत की रचना की थी. ये वो जगह है जहां भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान दिया था और कर्म की महत्ता पर प्रकाश डाला था. यहां के लोग अपनी संस्कृति से बहुत प्यार करते हैं, लोक गीत और रागनी(Haryanvi Folk Songs) यहां अब भी खूब सुने और गाये जाते हैं
आप कभी हरियाणा जायें और चौपाल पर बैठकर हुक्का ना गुड़गुड़ाएं तो अपना हरियाणा जाना व्यर्थ ही समझिए. आज के दौर में भले ही दुनिया तेजी से बदल रही हो और किसी के पास वक्त ना हो, लेकिन हरियाणा के गांव में जब आप घुसेंगे तो चौपाल पर हुक्का पीते बुजुर्गों के साथ आपको कितने ही जवान भी मिल जाएंगे.किसान और जवान
हरियाणा के लगभग हर घर में आपको किसान और जवान मिल जाएगा. यहां का बासमती चावल दुनियाभर में प्रसिद्ध है, और देश की आबादी में 2 प्रतिशत का हिस्सेदार ये प्रदेश सेना में लगभग 10 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है. मलतब देश का हर दसवां सैनिक हरियाणवी है. इसीलिए जय जवान, जय किसान के नारे को असल में हरियाणा चरितार्थ करता है.
हरियाणा अपने पहनावे और खाने से भी अलग पहचान बनाता है. क्योंकि इनकी पोशाक जीवंत और रंगीन है जो उनकी संस्कृति, परंपरा और जीवनशैली को दर्शाती है. यहां के पुरुष धोती कुर्ता और पगड़ी पहनना पसंद करते हैं जबकि कुर्ती, घाघरा और ओढ़नी महिलाओं की पसंदीदा पोशाक है.
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