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हरियाणा के सिरसा में बाबा तारा ने बियाबान जंगल में किया कठोर तप, आज है भव्य कुटिया, ये है बाबा की कहानी

यहां मन की मुरादें पूरी होती हैं। यहां का अलौकीक वातावरण आप में दैवीय ऊर्जा का संचार करता है। भव्य शिवालय, भगवान शिव की विशालकाय प्रतिमा, 12 ज्योर्तिंलिंग वाली गूफा, देवी-देवताओं की झांकियां आपको सहज ही आकर्षित कर लेती हैं।

यह कुटिया चमत्कारिक संत बाबा तारा की तपस्थली रही है। तारा बाबा पहुंचे हुए संत थे। वे एक फक्कड़ संत थे। लम्बे समय तक उन्होंने मौन रखा। बीहड़ों में तप किया। इस कुटिया में 12 साल तक उन्होंने बिना अन्न ग्रहण किए भगवान शिव की अराधना की।

बाबा तारा ने अपने जीवन में अनेक चमत्कार किए। वे रात के वक्त अकेले सोते थे। मानना था भगवान शिव उनके रक्षक हैं, उन्हें रक्षक की जरूरत नहीं है। वे हर बरस शिवरात्रि पर नीलकंठ, हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, रामेश्वरम व उज्जैन में जाया करते थे। बाबा तारा का जन्म हिसार के गांव पाली में श्रीचंद सैनी के घर हुआ। दो बरस की अल्प आयु में उनके माता-पिता स्वर्ग सिधार गए।



इसके बाद उनका लालन-पालन सिरसा के रामनगरिया गांव में उनकी बुआ और फूफा ने किया। जैसे-जैसे बालक तारा बड़ा हो रहा था। बुआ को उसके ब्याह की चिंता सताने लगी। पर बाबा तो मौजी था। अपनी धून में रमा रहता था। फक्कड़ स्वभाव और शिव का भक्त।

किशोरावस्था में तारा बाबा बिहारी की सेवा में जुट गया। बाबा बिहारी सिरसा के एक चमत्कारित संत थे। तारा की सेवा से संतुष्ट हो बाबा बिहारी ने उन्हें बाबा श्योराम के पास भेज दिया। इसके बाद बाबा तारा ने बाबा श्योराम से दीक्षा ली।

रामनगरिया के लोगों को तारा में एक चमत्कारिक संत नजर आने लगा, लेकिन इसी बीच बाबा तारा हिसार चले गए। वहां एकांत में भगवान शिव की अराधना करने लगे। रामनगरिया के लोग बाबा तारा के पास पहुंचे। उन्हें सिरसा आने को आग्रह किया।

बाबा ने उनका आग्रह स्वीकारा। सिरसा में रानियां रोड पर उजाड़ में अपनी कुटिया बनाई। साधारण लिबास में रहते थे। नलके का पानी पीते थे। हर वक्त शिव की भक्ति में लीन। स्वभाव फक्कड़ था।

20 जुलाई 2003 को अपने सेवकों के साथ हरिद्वार गए। 26 जुलाई को वे हरिद्वार के गंगाघाट पर पहुंचे। 27 जुलाई को शिवरात्रि के दिन उन्होंने दोपहर बारह बजकर 5 मिनट पर गंगाघाट पर अपनी देह त्याग दी। बाबा तारा के देहावसान के बाद उनके सेवक गोपाल कांडा ने रानियां रोड पर कुटिया को भव्य रूप दिया। 71 फीट ऊंचा शिवालय बनावाया। 108 फीट ऊंची भगवान शिव की प्रतिमा बनवाई।

दो किलोमीटर लम्बी पवित्र गूफा का निर्माण करवाया। संत निवास के अलावा कई देवी-देवताओं की झांकियां कुटिया में बनी हुई हैं। यहां पर साल 2006 में अतिमहारुद्र यज्ञ का आयोजन भी हुआ।

साल में दो बार शिवरात्रि के अलावा दीपावली, जन्माष्टमी जैसे पर्वों पर कुटिया में कार्यक्रम होते हैं। बाबा तारा की इस तपस्थली पर हर रोज अनेक लोग श्रद्धेय मन से आते हैं। जो भी श्रद्धा और निष्ठा से यहां आता है उसकी मुराद पूरी होती है। सचमूच अछूती आस्था की प्रतीक है बाबा तारा की यह तपस्थली। 1.

Avinash Kumar Singh

A writer by passion | Journalist by profession Loves to explore new things and travel. I Book Lover, Passionate about my work, in love with my family, and dedicated to spreading light.

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